MS Dhoni Birthday: ईस्ट ओ वेस्ट माही इज द बेस्ट

इंटरनेशनल क्रिकेट में सुगबुगाहट हुई थी, एक लंबे बाल वाले बल्लेबाज ने भारतीय टीम में एंट्री मारी थी। सुनने में आया था कि पांच लीटर दूध पीने वाला बल्लेबाज लंबे-लंबे छक्के यूं ही मजाक में मार देता है। रांची की तंग गलियों से निकलकर, घरेलू क्रिकेट में सालों तक तपने के बाद एक विकेटकीपर बल्लेबाज क्रिकेट की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने आया था। नाम था महेंद्र सिंह धोनी।23 दिसंबर, साल 2004 यही वो ऐतिहासिक तारीख है, जब माही इंटरनेशनल क्रिकेट की पिच पर पहली बार बल्ला थामकर मैदान पर उतरे थे। करियर की शुरुआत रनआउट के साथ हुई थी और स्कोर बोर्ड पर धोनी के नाम के आगे बड़ा जीरो लिखा गया था। आगाज की तरह ही माही के इंटरनेशनल करियर का अंत भी साल 2019 वर्ल्ड कप में रनआउट के साथ हुआ। हालांकि, इन दो रनआउट के बीच में महिया (धोनी) ने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर और तकदीर को पलटकर रख दिया।

माही की बात ही अलग थी

एमएस धोनी जैसे खिलाड़ी सदी में एक बार पैदा होते हैं और हर भारतीय फैन को इस बात पर गर्व होगा कि माही ने इस देश में जन्म लिया। कुछ अलग ही बात थी धोनी में। मानो किस्मत और समय का चक्र उनके इशारों पर नाचता था। चमत्कार करने की माही की आदत सी थी। बल्ला थामकर क्रीज पर उतरते थे, तो चंद गेंदों में मैच का रुख पलट देते थे। कप्तानी में ऐसी जादूगरी थी कि फ्लॉप खिलाड़ी को भी रातों-रात सुपरस्टार बना देते थे। जीत की दहलीज पर खड़ी विपक्षी टीम के कप्तान का दिल धक-धक करता था कि कहीं माही कोई चमत्कार करके बाजी ना पलट दें। साल 2004, चटगांव का मैदान और सामने बांग्लादेश की टीम। एमएस धोनी ने इंटरनेशनल क्रिकेट की पिच पर पहली बार कदम इसी मुकाबले में रखा था। हालांकि, कैफ के साथ तालमेल में हुई गड़बड़ के चलते माही बिना खाता खोले पवेलियन लौट गए थे। वहीं, अपने करियर के आखिरी मैच में भी धोनी ने मार्टिन गप्टिल के डायरेक्ट थ्रो पर रनआउट होकर इंटरनेशनल क्रिकेट से विदाई ली थी। इन दो रनआउट के बीच में गुजरे 16 साल के करियर में माही ने वो सबकुछ हासिल किया, जो कई खिलाड़ियों के लिए महज सपना बनकर रह जाता है।

इंटरनेशनल क्रिकेट में जब एमएस धोनी नए-नवेले थे, तो वो अपने बड़े-बड़े शॉट्स के लिए जाने जाते थे। बेलगाम होकर गेंदबाजों की धुनाई करना उस दौर में धोनी का सबसे पसंदीदा काम हुआ करता था। पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई 148 और श्रीलंका के खिलाफ माही के बल्ले से निकली वो 183 रन की विस्फोटक पारी आज भी फैन्स के जहन में है।

हालांकि, वक्त बदला और धोनी पर कप्तानी की जिम्मेदारी आई। कैप्टेंसी आते ही धोनी ने अपने खेल को भी बदल डाला। पहली गेंद से गेंदबाजों का जीना हराम करने वाले धोनी क्रीज पर समय लेकर खेलने लग गए। चौके-छक्कों में डील करने वाले माही ने एक-एक रन लेकर पारी को बुनने का हुनर सीख लिया। नंबर तीन या चार पर उतरकर मस्तमौला अंदाज में खेलने वाले धोनी टीम के लिए मैच फिनिशर बन गए। बतौर फिनिशर भी धोनी ने कई मैचों में भारतीय टीम अकेले दम पर जीत दिलाई।2007 टी-20 वर्ल्ड कप में जब पहली बार धोनी के हाथों में टीम की कमान सौंपी गई, तो कई तरह के सवाल खड़े किए गए। हालांकि, इन सभी सवालों का हिसाब-किताब माही ने उसी टूर्नामेंट को जीतकर चुकता कर दिया। विकेट के पीछे खड़े होकर मैजिकल कैप्टन धोनी अपनी कप्तानी से चमत्कार करते थे। कौन सा बल्लेबाज किस गेंदबाज के खिलाफ दिक्कत में आएगा, किसके खिलाफ कैसी फील्डिंग सेट करनी है, किस बैटर की कमजोरी क्या है, यह सब चीजें माही अपने मास्टर माइंड में कैलकुट कर लेते थे। दबाव महसूस कर रहे गेंदबाज से बातचीत करना, बल्लेबाज के दिमाग से खेलना यह सब धोनी की कप्तानी की खास बातें थीं।2007 टी-20 विश्व कप, 2011 वर्ल्ड कप और 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी पर कब्जा। धोनी दुनिया के इकलौते कप्तान हैं, जिन्होंने तीन आईसीसी ट्रॉफी को अपने नाम किया। सिर्फ इतना ही नहीं, अगर आप भारतीय क्रिकेट और माही के फैन हैं, तो 2008 में धोनी की कप्तानी में कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया का उसी की धरती पर क्या हाल किया था वो भी यकीनन आपको याद होगा।

भविष्य में और भी खिलाड़ी और कप्तान आएंगे, लेकिन अपने खेल और कैप्टेंसी से विपक्षी कप्तान को भी अपना कायल बना लेने वाले ‘थाला’ जैसा ना कोई हुआ है और शायद ना हो पाएगा।

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