Karisma Kapoor को जुबैदा से मिली सीखने की नई ललक,

वर्तमान में हिंदी सिनेमा में बायोपिक फिल्मों का चलन है। सैम बहादुर, मैं अटल हूं, पिप्पा और पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली की बायोपिक समेत आगामी दिनों कई बायोपिक फिल्में प्रदर्शन की कतार में हैं। बायोपिक फिल्मों में वास्तविक भूमिकाएं निभाने को कलाकार भी अपने लिए एक बड़ी उपलब्धि की तरह देखते हैं।फिलहाल अपने अभिनय सफर की दूसरी पारी में कुछ अलग भूमिकाएं देख रही अभिनेत्री करिश्मा कपूर यह उपलब्धि करीब दो दशक पहले साल 2001 में प्रदर्शित फिल्म जुबैदा में ही अर्जित कर चुकी हैं। करिश्मा ने रविवार को मुंबई में जागरण फिल्म फेस्टिवल में इस बारे में बातें की।

उन्होंने कहा-

जुबैदा मेरे लिए सबसे अलग फिल्म थी। इस फिल्म में मुझे ‘द’ श्याम बेनेगल के साथ काम करने का मौका मिला। उस फिल्म में वह मेरे लिए टीचर की तरह थे। उनका कहना था कि इससे पहले तुमने जो भी किया है, मैं उसका सम्मान करता हूं, लेकिन उन सब चीजों को भूलना पड़ेगा। मैं उनकी स्टूडेंट की तरह थी, नई चीजें सीखने के लिए लालायित थी।

किसी भी कलाकार के लिए यह बड़ी चीज होती है कि आप हमेशा एक स्टूडेंट की तरह सीखने के लिए तैयार रहते हैं। आज भी मेरे अंदर वही चीज है। जब मैंने ओटीटी शो (मेंटलहुड) किया, तब भी मेरी सोच यही थी कि मैं करिश्मा कपूर नहीं हूं, मैं भूमिका की गहराई में जाऊंगी। मैंने यह चीजें जुबैदा से सीखी थी।

आज के दौर के लोगों के लिए बायोपिक करना बहुत कूल बात है। अगर ऐसा है तो मैंने 20 साल पहले ही बायोपिक की थी। तब ऐसी फिल्मों के लिए आर्ट हाउस या सामानांतर सिनेमा जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता था।

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