हिन्दी कविता : आजादी

वीर सपूतों की शहादत से आजादी तो   मिली वतन को, संघ में मिली हर भारतीयों के तन को, पर कुछ लोगो के अंतर्मन में अभी गुलामी बाकी हैं जो वक़्त वक़्त पर हर गल्ली मोहल्ले में सड़कों पर आजाते हैं, आजादी आजादी का झूठा नारा लगाते है, अपने निजी हितों के खातिर देश का मॉन घटाते हैं,,,,,, कभी प्रान्त कभी भाषा को लेकर वो सड़को पर आजाते हैं, द्वेष जलन नफरत की वो बाते फैलाते है, अपने ही घर के आंगन मे वो लोग नफरत की आग लगते हैं, आजादी…

Read More

: कर भरोषा खुद पर तू

न  किसी से कोई उमीद कर न कर किसी से कोई आस तू , सच कहता हूं मॉन ले मेरा कहना कभी न होगा निराश तू, खुद ही खुद पर कर भरोषा अब बनजा सब से खास तू,,,,2 खुद पे भरोषा कर के चल अपने कदमो पर नाज कर, ना किसी की सुन कभी ना हौसला तू हारना , वक़्त तेरा बदलेगा तू हर अपने  काम को  कर्मठता से  ललकारना ,,,,2 टूट कर वो गिरते है जो औरो के कन्धों के भरोशे खड़े होते है, बाजिया वो हारते हैं जो…

Read More

देव तुल्य

सारे विश्व में फैली है… देखो कोविड-19.. छुपा रुस्तम विषाणु.. प्राणघातक जानलेवा.. घरों में समय रहते. सावधानियां बरतें.. देश में किया गया तालाबंदी… दो गज‌ की दूरी का रखो ध्यान.. घर में रहो, सुरक्षित रहो.. बार-बार यह दिशा निर्देश, साफ -सफाई का रखो ध्यान यही है इस वक्त का सही इलाज.. यहां के डॉक्टर्स ने दिन-रात अपनी जान की जान लगा दी.. मरीजों की सेवा करने को.. ना देखा स्वयं को. ना अपने परिवार को.. देखा तो सिर्फ भारत का हित.. देश बचाओ, प्राण बचाओ.. घर में रहकर साथ दो..…

Read More

भारत भाग्य विधाता बनकर

डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय भारत  भाग्य  विधाता  बनकर सबको   तू    अपनाता    चल  कठिन  परिश्रम  के  बलपर तू   अपनी  राह      बनाता    चल श्रम   के  बिंदु  बनाकर   मोती  जन-जन   को  अर्पित   कर दे  दीन दुखी  निबलों  विकलों की  खाली    झोली   फिर   भर   दे  पौरुष   का    पाथेय  प्राण मय ध्वज   आगे    लहराता     चल भारत   भाग्य    विधाता बनकर  सबको    तू    अपनाता    चल   चंवर  डुलाता है पीपल नित  लोरी    नीम    सुनाती      है  जामुन   की   छाया  जादू…

Read More

दयाशंकर की कविताओं से ताजा होती है वौड्सवथ याद’

भोर की बेला’ पर विचार व्यक्त करते हुए मासूम रज़ा राशदी ने कहा प्रयागराज। दयाशंकर प्रसाद की कविताओं को पढ़ते-पढ़ते कब पाठक प्रकृति की गोद में चला जाता है ये पता ही नहीं चलता, ये जब लिखते हैं तो ऐसा लगता है कि कलम ने कूंची का और कागज ने कैनवस का रूप धारण कर लिया हो और रंगों के रूप में पूरा इन्द्रधनुष कैनवस पर उतर आया हो। दयाशंकर प्रसाद जी की कविताओं को पढ़ते पढ़ते विलियम वौड्सवर्थ की याद ताजा हो जाती है। यह बात मासूम रज़ा राशदी…

Read More

मेरा सुख तुमको मिल जाए  

 मेरा सुख तुमको मिल जाए  और तुम्हारी पीड़ा मुझको   कंकरीला पथ मुझे मुबारक   फूलों भरी डगर हो तुझको   हर उदास मौसम मेरा हो   तुम्हें बसंती पवन झुलाए   मेरे सुख की नींद सलोनी   तेरी पलकों  में आ  जाए मेरी  उम्र  तुम्हारी   बन कर  दे दे प्रतिपल यौवन तुझको मेरा सुख तुमको मिल जाए  और तुम्हारी पीड़ा मुझको तेरी   हर  चिंताएं  आकर   मेरी झोली  में गिर  जाएं  और तुम्हारे दामन मे  वे  खुशियों की रोली भर जाएं मेरी सांस तुम्हारी बनकर  सुमधुर  गीत सुनाए तुझको…

Read More

 विलुप्त होती मानवता”

विलुप्त होती मानवता” आज सहमा सहमा सा हर आदमी है, कोरोना से डरा हर आदमी है, आज मानवता हारी है, हर एक के मन में उथल-पुथल जारी है, लोग अब घबरा रहे हैं, भगवान से क्षमा मांग रहे हैं, प्रकृति में आया तूफान सा है, हर एक के मन में उफान सा है, हर कोई बस यह सोच रहा है, जीवन कितना अब शेष बचा है, लेकिन अपनी आदत से मात खा रहा है, ना चाह कर भी नियमों को तोड़ता जा रहा है, महामारी का टिक टॉक बना रहा…

Read More

कोरोना से बिल्कुल अब डरो ना

कोरोना से बिल्कुल अब डरो ना घरपर ही रहकर सब कुछ करोना। कोरोना से फिर , कुछ ना डरो ना। कर्तव्य का पाठ, कुछ तो पढ़ो ना। डर कर सहम कर,अब ना मरो ना। बस हिम्मत से आगे,आगे बढ़ो ना। किस्मत का क्यों है ? बस ये रोना। अब  हाथ पे हाथ  धर यों  बैठोना। कला साहित्य की साधना करो ना। चैन की मुरलिया की धुन छेड़ो ना। संगीत लहरियों की  लय जोड़ो ना। यों करने की कुछ  तो  ठान लो ना। कोरोना  की  ऐसे  कमर  तोड़ो ना। ना हाथ…

Read More

कोरोना से बिल्कुल अब डरो ना

कोरोना से बिल्कुल अब डरो ना घरपर ही रहकर सब कुछ करोना। कोरोना से फिर , कुछ ना डरो ना। कर्तव्य का पाठ, कुछ तो पढ़ो ना। डर कर सहम कर,अब ना मरो ना। बस हिम्मत से आगे,आगे बढ़ो ना। किस्मत का क्यों है ? बस ये रोना। अब  हाथ पे हाथ  धर यों  बैठोना। कला साहित्य की साधना करो ना। चैन की मुरलिया की धुन छेड़ो ना। संगीत लहरियों की  लय जोड़ो ना। यों करने की कुछ  तो  ठान लो ना। कोरोना  की  ऐसे  कमर  तोड़ो ना। ना हाथ…

Read More

पूरा देश तुम्हारा होगा

 डा ़ भगवान प्रसाद उपाध्याय जिस  दिन मन में भाव जगेगा पूरा     देश    तुम्हारा      होगा बीज घृणा के  बोने  वालों मन  भर  ईर्ष्या ढोने वालों शिक्षितऔर अशिक्षित दोनों हृदय   कलुषता  दूर करो तो जब भी   एक    इशारा होगा  धरती  अंबर   सारा   होगा  पूरा   देश   तुम्हारा    होगा जिस    मिट्टी पर अन्न उगाते उछल कूद    फिरते इठलाते यश धन वैभव सब कुछ पाते  फिर भी उसका मान न करते  इस मिट्टी का नमन   करो तो  जनगण   तुमको   प्यार होगा  पूरा   देश    तुम्हारा   …

Read More