जीवन जीने का नाम

डा0 कुसुम पांडेय जीवन जीने की कला हम हर दिन सीखते हैं। हर पल स्वयं से उलझते हैं,सुलझते हैं फिर आगे बढ़ते हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि जीवन सदैव एक ही दिशा में चलता है नित नए संघर्षों और अंतर्द्वंदों में ही हम सबका जीवन गुजरता है। जिन्हें आज हसरत भरी निगाहों से निहार रहे हैं जिन पर अपना प्यार लुटा रहे हैं यह पता ही नहीं है कि हम कब के उनकी नजरों के कांटे बन चुके हैं वो हमें अपने दिल से कोसों दूर कर चुके…

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हिन्दी कविता : प्राण प्रिये

आवो प्राण प्रिये मैं तुम्हारा शब्दों से सिंगार करू, दिल कहता हैं तुम्हे शब्दो से सजाकर जीभर कर तुमसे प्यार करू, आजावो तुम प्राण प्रिये मैं आज तुम्हारा शब्दो से खूब सिंगार करू, मृग नैनी से नयन तुम्हारे केश ये काली घटा हैं, अधर तुम्हारे कमल पंखुड़ी मलमल जैसे गाल हैं, संगेमरमर सी तेरी काया तू चितवन चित चोर हैं, मधुर कोयलिया से तेरे मीठे स्वर हैं तू मन को मेरे अति भाती हैं, तूम हो कामिनी गजगामिनी तुम ही कामकला कामेश्वरी, मनमोहिनी मनभावनी तुम ही हो मन्दाकिनी , तुम्हे…

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हिन्दी कविता : चाय

चाय चाय गजब की चीज हैं भइया करती बड़ा कमाल हैं, जीसने चाय का किया हैं धन्धा आज वो बड़ा ही माला माल हैं, चाय जोड़ती चाय तोड़ती चाय बड़े बड़े काम करवाती हैं, चाय के दम पर बड़ी बड़ी डील सस्ते में हो जाती हैं, सच मे यारो मानो कहना चाय गजब की चीज हैं, चाय में चर्चा चौपाल पर होता सुबहो शाम हैं, चाय की ज्यादा कीमत नही है बहुत कम इसका दाम हैं, बड़ी सरलता से यारो ये हर जगह मिल जाती हैं, गाँव शहर ऑफिस गल्ली…

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हिन्दी व्यंग कविता : बेशर्मी

नर नारी में होड़ मची है कौन यहाँ बेशर्म हैं, शीतलहरी को लू बताते कहते बहुत ही गर्म जरा गौर से देखो यारो दोनो ही बेशर्म हैं, ये बेशर्मी का दौर हैं बात नही कुछ और हैं,,,,,,2 नारी के सर का ताज केश हैं जिसे वो कटवाती हैं, नारी के सम्मान को वो खुद से खुद ही घटाती हैं, रूप रंग व भेष बदलकर खुद को मर्द दिखाती हैं, ये बेशर्मी का दौर हैं, बात नही कुछ और हैं,,,2 पुरषों को भी अब क्या कहना वो भी करते बड़ा कमाल…

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कविता : मैं हिन्दू हु

ना मैं ब्राह्मण ना मैं बनिया ना ठाकुर ना ठकराल हु, पूरे विश्व मे सब से ऊपर मैं विश्व गुरु हृदय से बहुत विशाल हु ,मैं धर्म सनातन का प्रहरी मैं हिन्दू हु मैं हिन्दू हु,,,,,2 ना मैं यादव ना मैं कोइरी ना सिंह ना राय हु, सदा सभी के संघ में मैं रहता  सब का साथ निभाता हु, मानवता की अलख जलाकर सब को मैं अपनाता हु, धर्म सनातन में जन्म लिया मैं हा मैं हिन्दू हु मैं हिन्दू हु,,,,,,2 ना मैं वैश्य ना मैं छत्रिय ना दलित ना…

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गंगा मैया की व्यथा

डॉ कुसुम पांडेय गंगा मैया करे पुकार…. बचाओ मेरी अविरल जलधार… सब आते मेरे जल से… पाप धोकर पुण्य कमाने… लेकिन मैं खुद कहां जाऊं खुद को शुद्ध कराने जहां मेरे जल को अमृत का वरदान मिला है…. वही मानव जाति ने अजब विरोधाभास किया है… जिसके जल को जीवनदायिनी माना जाता है…. जिसका जल सारे तीर्थों का पुण्य करा देता है… उसी गंगा मैया का जल मैला करके… फिर उसी जल से खुद को शुद्ध करते मैं समझ नहीं पाई यह बात…. क्यों मानव अपनी अज्ञानता का नहीं करता…

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अन्ध भक्ति का इनाम मिला,,,

हाथ जोड़कर सत्य बात मैं पूरे देश को बता रहा हु,  कई वर्षों की अन्ध भक्ति का मिला बड़ा सुंदर इनाम, मेरे संघ संघ देखो खुश है आज पूरा हिंदुस्तान,,क्यो की सब से प्यारा सब से सुन्दर अन्ध भक्ति का मिला इनाम,,,2  आतंकवाद का जबड़ा तोड़ा उसपर देखो लगा लगाम, बम धमाका देश मे बन्द हैं खुशियां मनाये सारा हिन्दुस्तान, आतंक वादी काप रहे है सुनकर यारो  हिन्द का नाम सब से प्यारा सब से सुन्दर अन्ध भक्ति का मिला इनाम,,,,2 जिस कश्मीर को बनाके हउवा बिरयानी खाता था कउवा…

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कविता : मैं चला जाऊंगा

क्या कमाया क्या बनाया क्या किया मैंने जग में काम, शौहरत दौलत नाम दाम सब कुछ यही छोड़ जाऊंगा कुछ  भी ना लेकर जाऊंगा, एक दिन मैं चला जाऊँगा,,,,,,,2 जब तक सांसे चल रही हैं मेरी तब तक सारा मेला हैं , ममता चिन्ता और चतुराई ये सब माया का झमेला हैं, सारी बाते यही छोड़ कर झट से मैं चला जाऊंगा,,,,,2 कब कहा औऱ किस हालत में मेरे सफर की होगी सुरुवात, इस बारे में मैं कुछ ना जानू ना ईस विषय मे करू कभी कोई बात, पर सब…

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व्यंग कविता : बकलोल

बकलोलो से कुछ ना बोलो सारे हैं बकलोल , दस रुपये की टोटी खोली खुल गई इनकी बुद्धि की पोल, सत्य कहा हैं किसी बड़े ने ये सारे हैं बकलोल, बोल हरि बोल हरी हरि हरि बोल,,, बिन बुद्धि की बात है करते बाप पर भी विष्वास न करते बिना वजह ही बात बात पर अपने बाप और चाचा से लड़ते हैं, और पड़ोसी मन को भाए हसकर उसको गले लगाते हैं, सही कहा हैं किसी बड़े ने ये तो है बकलोल, बोल हरी बोल हरी हरी हरी बोल,,,,,2 आलू…

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हिन्दी कविता : बाप कमाई

मजा नही आता  है यारो जीवन मे आप कमाई में, असली मजा तो आया था जीवन मे बाप कमाई में, ना किसी बात की चिन्ता थी ना फिक्र थी रोटी पानी की, हर पल बात किया करते थे हँसी  मस्त जवानी की,,,,2 खाली जेब  से  भी दौलत की भरमार हुवा करती थी, एक शब्द जो कहते थे पूरी हर डिमांड हुवा करती थी , हर रोज जश्न में डूबी हमारी शाम हुवा करती थी, सच कहते है जीवन का हर सुख पाया हम ने बाप कमाई में, अब तो सदा…

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