श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व इस बार भी दो तिथियों पर पड़ रहा है। दरअसल अष्टमी तिथि का प्रारम्भ 11 अगस्त 2020 को प्रातः 9 बजकर 6 मिनट से हो रहा है और 12 अगस्त 2020 को 11 बजकर 15 मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। मान्यता है कि जब भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व दो अलग-अलग तिथियों पर आता है तो पहले दिन स्मार्त सम्प्रदाय और दूसरे दिन वैष्णव सम्प्रदाय के लोग व्रत तथा पूजन करते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर देश भर के मंदिरों को खूब सजाया जाता है लेकिन इस बार कोरोना काल में सबकुछ बदल गया है। मंदिर सजाये तो जा रहे हैं लेकिन अधिकतर जगह श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं होगा। श्रद्धालु ऑनलाइन ही मंदिर में भगवान के दर्शन कर सकेंगे और झाकियों का आनंद ले सकेंगे। कुछ मंदिरों ने भक्तों को प्रसाद देने के लिए मशीनें लगायी हैं जहाँ हाथ आगे करते ही प्रसाद का पैकेट हाथ में आ जायेगा। इस बार बरती जा रही तमाम एहतियातों के चलते भगवान को कुछ अर्पित नहीं किया जा सकेगा।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नियम
इस व्रत को करने वालों को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात सप्तमी को हल्का तथा सात्विक भोजन करें। सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें। उपवास वाले दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठें। हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर संकल्प करके मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री यथाक्रम रखें, तत्पश्चात चित्र या मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति में प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किये हों, ऐसा भाव प्रकट हो। घर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक कर उसे अच्छे से सजाएं। इसके बाद श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करें।