प्रयागराज । अतिया नूर जोश और जज़्बे के साथ इल्मो-अदब की बेहतरीन रवायत
को आगे बढ़ाते हुए, शायरी के उस्तादों की मानिंद शायरी कर रही हैं।
इन्होंने आमफ़हम ज़बान का बेहतर इस्तेमाल किया है। हिंदी और उर्दू में
एकत्व स्थापित करके हिंदुस्तानी ज़बान में व्याकरण सम्मत शायरी की है।
अपने परिपक्व लेखन से आपने भविष्य में बड़े रचनाकार होने का विश्वास
दिलाया है। आपकी शायरी आने वाले दिनों में हिंदुस्तानी गजल के संसार को
रौशन करेगी। यह बात रविवार को इश्क़ सुल्तानपुरी ने गुफ़्तगू द्वारा
आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में अतिया नूर के ग़ज़ल संग्रह ‘पत्थर के फूल’ पर
प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही।
कुशीनगर के शायर डाॅ. इम्तियाज़ समर ने कहा कि अतिया नूर की शायरी की उनकी
दिल की तर्जुमान है। वो दिल में उतरती है, ख़लिश पैदा करती हैं और सोचने
पर मजबूर करती है। शऊर को झंझोड़ती है और अहसास को छूकर गुजरती हैं। इनकी
फिक्री तौर पर उन सच्चाइयों और तजुर्बों से असरात कुबूल करती है जहां
ज़िन्दगी सांस लेती है।
मासूम रज़ा राशदी ने कहा कि अहदे हाज़िर की शायरात में जो तगज्जुल, जो
नगमगी, जो संजीदगी और जो निस्वानियत मोहतरमा अतिया नूर साहिबा की शायरी
में पाई जाती वो कहीं और दिखाई नहीं पड़ती। उनका यह शेर – ‘बच्चे को मां
खिलौनों में ही ढूंढती रही/
और बच्चा कद में मां के बराबर का हो गया’। अपने एहसासात को बेहद शाइस्तगी
से अल्फाज के पैकर में ढालने का हुनर तो उन्हें विरासत में ही मिला है
लेकिन तख़य्युल का वसीअ दायरा और मुख़्तलिफ़ बह्रों पर उबूर इन्हें समकालीन
क़लमकारों से कहीं आगे ले जाता है। अगर मैं कह दूं कि अतिया नूर साहिबा की
शायरी, परवीन शाकिर साहिबा की शायरी की निरंतरता है तो मैं अतिशयोक्ति
नहीं करूंगा, आप खुद देखिए-‘उसको जाने की जिद थी गया भी वही/नाम जिसने
मिरा बेवफ़ा रख दिया।’
मैनपुरी के बीएसए विजय प्रताप सिंह ने कहा कि अतिया नूर एक अच्छी शायरा
हैं। इनकी ग़ज़लें, नज़्में समय-समय पर पढ़ने को मिलती रहीं हैं। आपके यहां
इश्क के कई आयाम हैं, समाज और राजनीति की चिंताएं हैं,सबसे बड़ी बात कि
आपके यहां विपरीत परिस्थितियों में भी, एक गहरी उम्मीद है।
अर्चना जायसवाल, मनमोहन सिंह तन्हा, शगुफ़्ता रहमान, रचना सक्सेना, ऋतंधरा
मिश्रा, तामेश्वर शुक्ल तारक, सुमन ढींगरा दुग्गल, रमोला रूथ लाल आरजू,
शैलेन्द् जय, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, अनिल मानव और सागर होशियारपुरी ने भी
विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने
किया। सोमवार को बुद्धिसेन शर्मा की ग़ज़लों पर परिचर्चा होगी।
– इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी