लालच और अहंकार की निरर्थकता को दिखाती दिलचस्प कहानी
कार्यालय संवाददाता
प्रयागराज। त्रिधारा नाट्य महोत्सव शुरुआत बैकस्टेज संस्था के प्रभावशाली नाट्य प्रयोग बाजी से हुई। नाट्य प्रस्तुति का मुख्य विचार जीवन के मूल्य और धन के प्रति इंसान की लालसा को समझाने के साथ धन और आत्मिक विकास के बीच अंतर दिखाना है। नाट्य समारोह का उद्घाटन प्रसिद्ध विद्वान प्रो. हरिदत्त शर्मा और पूर्व संस्कृति मंत्री एवं कला संरक्षक सुभाष पांडेय ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया।
सुपरिचित रंगकर्मी प्रवीण शेखर निर्देशित रुचिकर रंगविन्यास, प्रभावी अभिनय और सघन कथा संरचना की इस प्रस्तुति में दिखाया गया है कि असली ज्ञान संसार की इच्छाओं से ऊपर उठने में है। अविनाश चंद्र मिश्र लिखित यह नाटक एंटन चेखव की कहानी ‘द बेट’ पर आधारित है। ‘बाज़ी’ जीवन की प्रकृति और मूल्य के बारे में एक शर्त है. अमीर गोयल जो मानते हैं कि मृत्युदंड आजीवन कारावास से अधिक मानवीय और नैतिक है—का तर्क है कि अनुभव, सुख और रिश्ते ही जीवन को जीने लायक बनाते हैं। उनके अनुसार, कैद में बिताया गया जीवन अनिवार्य रूप से एक जीवन नहीं है, इसके बजाय यह एक धीमी और निरंतर मृत्यु है। इसके विपरीत, युवा वकील श्री सक्सेना का तर्क है कि ‘बिल्कुल नहीं से बेहतर है जीवित रहना, किसी भी तरह जीना अपने आप में मरने से बेहतर है।’ युवा वकील के तर्क में यह निहित है कि यदि कोई शारीरिक रूप से जीवित है, तो कोई भी उसकी परिस्थितियों की परवाह किए बिना जीवन को जीने लायक बना सकता है। दोनों तमाम तर्कों के बाद सहमत होते हैं कि अगर वकील दस साल के लिए कारावास सहन कर ले तो अमीर गोयल उसे एक बड़ी राशि देगा, यही वह दांव है. हालांकि, तकनीकी रूप से गोयल की जीत होती है, लेखक अंततः जीवन का अर्थ, स्वर्ग, नर्क से जुड़े तमाम सवाल छोड़ जाता है।
नाटक में सतीश तिवारी (गोयल), अमर सिंह (वकील सक्सेना), प्रत्यूष वर्सने (पत्रकार तनेजा), दिलीप श्रीवास्तव (रामसेवक), नम्रता सिंह (श्रीमती गोयल) ने अपने अभिनय से दर्शकों की खूब प्रशंसा अर्जित की। प्रकाश योजना टोनी सिंह, संगीत व सहयोगी निर्देशन अमर सिंह, नेपथ्य कर्म कुमार अभिनव, सिद्धांत चंद्रा , शिवा, हीर, शीरी आदि था।