शहीद

आँखे ये बरसती हैं, दीदार को तरसती हैं, तुम शहीद हुवे वतन पर तुम्हे देखने के लिए मन की अखिया तड़पती हैं, ,,,,,
माँ सिसक रही मन में बहन सुबक सुबक रोती, पिता व्याकुल होकर हर पल पल  तस्वीर निहार रहे है, तेरी वर्दी व तस्वीर को हाथो से सवार रहे है, बिना पलक झपके हर पल वो तस्वीर निहार रहे है,,,,,,
तू ने वतन पर जान लुटाकर माँ के दूध का कर्ज निभाया हैं, तूने माँ भारती की रच्छा में जान गवा कर पिता का मान बढ़ाया हैं, तेरी बहादुरी ने आज विश्व मे तिरंगे व देश के गौरव को बढ़ाया हैं,,,,
जब जब देखता हूं इस तिरंगे को तब तब तेरी याद आती हैं, मैं रोक नही पाता हूं खुद को ,मेरी आँखें बरस जाती हैं, तेरी याद आती हैं और हमे रुलाती हैं, पर गर्व हैं तुझपर तूने वतन की शान बढ़ाया हैं माँ भारती की तूने लाज बचाया हैं,,,,,
कवी : रमेश हरिशंकर तिवारी
    (रसिक बनारसी )

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