बीआरआई प्रोजेक्ट की वजह से ही दुनिया के कई देश चीन के कर्जजाल में फंसकर कंगाल हो चुके हैं। भारत ने इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करने से साफ इनकार कर दिया। शिखर सम्मेलन के अंत में जारी नई दिल्ली घोषणा में भारत ने बेल्ट एंड रोड्स इनिशिएटिव (बीआरआई) का समर्थन करने वाले पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। समिट के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने महत्वकांक्षी बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव यानी बीआरआई का जिक्र किया। लेकिन इसे कोई ज्यादा तवज्जो नहीं मिल सकी। जिनपिंग की तरफ से बीआरआई की बात को रखने के बावजूद भारत ने इसे नजरअंदाज किया। लेकिन साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की खबर के अनुसार भारत के अलावा ईरान की तरफ से भी जिनपिंग की बात से ज्यादा तबज्जो नहीं दी गई।
जिनपिंग ने समिट के दौरान कहा कि बीआरआई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, क्षेत्रीय सहयोग, व्यापार और निवेश को आसान बनाएगा। इसके साथ ही बीआरआई में बेहतर तालमेल की अपील की। इसके बाद जो साझा बयान जारी किया गया उससे पता लगता है कि भारत और ईरान ने जिनपिंग की बीआरआई नीति का समर्थन नहीं किया है। भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना (बीआरआई) का एक बार फिर समर्थन करने से इनकार कर दिया। इसी के साथ वह इस परियोजना का समर्थन नहीं करने वाला शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का एकमात्र देश बन गया। एससीओ शिखर सम्मेलन के अंत में जारी घोषणा में कहा गया कि रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने बीआरआई के प्रति अपना समर्थन दोहराया है।
ड्रैगन के बेल्ट एंड रोड एनिशिएटिव के बारे में तो सब जानते हैं। जिसके तहत वो सीपीईसी का निर्माण कर रहा है। इसके प्रोजेक्ट के जरिए चीन ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान के रास्ते यूरोप तक जाने का प्लान बनाया है। बीआरआई के जरिए चीन दुनिया के गरीब देशों को कर्ज दे रहा है और फिर उनके संसाधनों पर कब्जा कर रहा है। अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक कई देश उसके कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। चीन के प्रोजेक्ट पर भारत हमेशा से खुलकर ऐतराज जताता रहा है। ऐतराज की वजह है ये कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरता है जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है।