हिन्दी कविता: मौन रहो

बनकर मौन तुम बैठे रहना
कभी किसी को कुछ ना कहना,
जुल्म सितम चाहे जितने भी हो
चाहे जितना भी हो अपमान,
सदा मौन तुम यूंही रहना,,,,,,
बनकर मौन तुम बैठे रहना
चाहे घटे तुम्हारा मान,
चाहे कोई तुम्हारे घर की  अस्मत
लूट चाहे तुम्हारे अपनो को सड़को पर कुटे,
सदा  मौन तुम यूंही  रहना,,,,,,,
बनकर मौन तुम सब कुछ सहना
कभी विरोध में कुछ ना कहना,
चाहे जाए तुम्हारे घर की मर्यादा
चाहे जबरन तुम सड़को पर
 पीटे जाओ,
पर सदा मौन तुम यूंही रहना,,,,,
सब कुछ सहना कुछ ना कहना
सदा मौन तुम यूंही रहना,
चाहे बेटियां काटी जाए
चाहे फूट फुट कर रोए बहाना,
सदा मौन तुम यूंही रहना,,,,,,
धीरे धीरे ये सारे जुल्मी
एक दिन छाती पर चढ़ जायेंगे,
हम सब सारे सड़को पर होंगे
ये हमारे घर में घुस जाएंगे,
पर सदा मौन तुम यूंही रहना,,,,,
कभी ये जुल्मी राष्ट्र विरोधी
कभी धर्म विरोधी बन जाते है
कभी सड़को पर दिखा के ताकत
संविधान की आड़ में संविधान
 का मजाक बनाते है,
पर तुम सदा मौन बस यूंही रहना,,,,,,,
कवि: रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी ) #मुम्बईकर

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