परीक्षा में अंकों पर नही ज्ञान पर दें ध्यान -अल्पना डे

प्रयागराज। महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर में कक्षा नौ के विद्यार्थियों के लिए आभासी मंच के माध्यम से कार्यशाला का आयोजन आज सभागार में किया गया जिसका विषय था – ‘परीक्षा के समय होने वाले तनाव को कैसे सँभाले?’ जिसकी प्रवक्ता थी ‘प्राणी हीलिंग की वरिष्ठ प्रशिक्षिका एवं प्रेरणादायी वक्ता श्रीमती अदिति कोहली थी। विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती अल्पना डे ने अदिति का स्वागत किया। कार्यशाला में विद्यालय की सचिव  प्रो कृष्णा गुप्ता, प्रबन्ध समिति के गणमान्य सदस्य, प्रधानाचार्या अल्पना डे, शिक्षक वृंद एवं विद्यालय के कक्षा 9 के छात्र सम्मिलित थे। कार्यशाला का संचालन श्रीमती गोपा भट्टाचार्या ने किया। प्रवक्ता अदिति कोहली ने छात्रों से परस्पर संवाद स्थापित करते हुए अपनी सधी हुई वाक् शैली में वास्तविक जीवन के उदाहरणो के माध्यम से कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में परीक्षाओं के दौर से गुजरता है और परीक्षा को लेकर तनावग्रस्त होता है। तनाव का होना एक स्वाभाविक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है किंतु कई बार ये तनाव विशेषकर छात्रों के लिए घातक हो जाता है। आज का युग प्रतियोगिता का युग है, जहाँ विद्यार्थी दूसरों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में अकारण ही तनाव ग्रस्त होता जा रहा है। इसका मूल कारण है – तैयारी का अभाव, परिवार एवं समाज की अपेक्षाओं पर खरे उतरने का तनाव, उपहास का भय। तनाव मूलतः अपेक्षाओं एवं वास्तविकताओं में अभाव के कारण उत्पन्न होता है यानि जब हम आशाएँ तो बड़ी-बड़ी कर लेते है किन्तु उसके अनुरूप परिश्रम नहीं करते तों तनाव का होना स्वाभाविक होता हैं। इसका समाधान है कि अपने समय का उचित प्रयोग करें, सभी विषयों का निरन्तर अभ्यास करें। विफलता के बारे में न सोचकर बेहतर प्रदर्शन के विषय में सोचे। ऐसे लोगों से प्रेरणा ले जो कुछ न होते हुए भी जीवन में कुछ ऐसा कर जाते है जो दूसरों के लिए मिसाल बन जाते हैं। जब भी आपको तनाव महसूस हो संगीत सुनें, योग एवं ध्यान करें और अपनी पसंद का कोई खेल अवश्य खेलें। आहार एवं निद्रा का भी विशेष ध्यान रखना अत्यधिक आवश्यक है तथा अपनी भावनाओं को किसी न किसी से साझा अवश्य करें। उन्होंने बच्चों को ध्यान-योग के द्वारा मन को शान्त करने, स्मरण – शक्ति को बढ़ाने और अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए श्वॅसन-प्रक्रिया एवं सरल योग तकनीकि का उल्लेख किया। जैसे – जिह्वा को तालु से लगाकर अपने ‘अजनाचक्र’ को जागृत करना और स्वयं की आंतरिक ऊर्जा को अनुभव करना। कार्यशाला के अंत में विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती अल्पना डे ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कोई भी परीक्षा अंतिम परीक्षा नहीं होती है और न ही ये आपके भविष्य को तय करती है। जीवन की दौड़ में हर व्यक्ति दौड़ता हैं किन्तु प्रथम तो कोई एक ही आता हैं।, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि बाकी अन्य प्रतियोगी उस दौड़ का हिस्सा नहीं है। इसलिए परीक्षाओं को चुनौती के रूप में स्वीकार करें। स्वयं के प्रतियोगी बनिए। हृदय एवं बुद्धि में सामंजस्य स्थापित कीजिए। अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत कीजिए। परीक्षा को उत्सव के रूप में देखिए तनाव के रूप में नहीं। परीक्षा में अंको पर नही ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित कीजिए। विद्यालय की सचिव महोदया ने कहा कि परीक्षा को सकारात्मक दृष्टि से देखे और अपनी क्षमता एवं सामथ्र्य के अनुसार परीक्षा की तैयारी करें क्योंकि परीक्षाएँ हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करती है। अत्यधिक चिंतन द्वंद का रूप धारण कर घातक सिद्ध होता है जबकि आत्म विश्लेषण विकास का कारण बनता है। स्वयं पर विश्वास रखें। समग्रतः कार्यशाला अत्यंत उपयोगी एवं सोद्देश्यपूर्ण रही।

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