मनुष्य की जाति के समान भाषा की भी जाति: प्रो योगेन्द्र प्रताप

प्रयागराज। ज्ञान के उच्च धरातल पर सभी विषय समान हो जाते हैं। इसलिए विषयों को विभिन्न खाचों में बांटना अनुचित है। मनुष्य की जाति के समान भाषा की भी जाति होती है। भाषा समाज में निर्मित और परिष्कृत होती है।
यह बातें मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज के हिन्दी विभाग के प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के संघटक महाविद्यालय ईश्वर शरण पीजी काॅलेज में मंगलवार को ‘‘प्रयोजन मूलक एवं सृजनात्मक लेखन विषयक मूल्यवर्धित पाठ्यक्रम’’ के उद्घाटन सत्र में व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कही। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान की चुनौती यह है कि जीवन के प्रयोजन मूलक या व्यवहारिक क्षेत्र में हिन्दी भाषा का प्रयोग भी अंग्रेजी के आधार पर ही किया जाता है। हमारे हाथ में स्मार्टफोन इसका अन्यतम उदाहरण है।
प्रो. सिंह ने संचार माध्यम, मीडिया में भाषा का महत्व बताते हुए बिहारी, महादेवी, अज्ञेय और निर्मल वर्मा के संदर्भों को उद्धृत करते हुए स्पष्ट किया कि सृजनशीलता हमारे बौद्धिक स्तर को परिपक्व करती है और इसके विविध आयाम कहानी, नाटक, कविता, उपन्यासों आदि विधाओं के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। सृजनशीलता सत्यम्, शिवम् और सन्दरम् का संश्लेष है। इसी आधार पर रचनाकार की रचना प्रक्रिया समृद्ध होती है। यही भाषा मनुष्य को गढ़ती है जिसके माध्यम से हम मनुष्य मात्र के प्रति सम्वेदनशील होकर मनुष्यत्व के बोध से सम्पृक्त होते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं धन्यवाद ज्ञापन भाषा केन्द्र की संयोजिका डाॅ. रचना सिंह ने की। कार्यक्रम संयोजक डाॅ. कृपा किंजलकम रहे और संचालन डाॅ. अमरजीत राम ने किया।

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