सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने परलोकवासी होने के बाद भी नया सियासी संदेश दिया है। उनकी अंतिम यात्रा ने क्षेत्रीय दलों की एकता का प्रस्थान बिंदु तय किया है जहां से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी राह निकल रही है। दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस को भी सोचने के लिए विवश कर दिया है। उनकी अंतिम यात्रा में हुए सियासी जमावड़े से इस बात का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका कद कितना विशाल था। इस कद केअनुरूप समाजवादी पार्टी को खड़े रहने की चुनौती भी स्वीकार करनी होगी।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव पंचतत्व में विहीन हो गए हैं। उन्हें करीब से जानने वाले कहते हैं कि नेताजी का कोई भी दांव अनायास नहीं रहा। उनके बयान हो अथवा अन्य गतिविधि उसके सियासी मायने होते रहे हैं। इसकी झलक मंगलवार को उनकी अंतिम यात्रा में भी दिखी। वह जाते- जाते एक बड़ी विरासत छोड़ गए हैं। यह विपक्षी एकता की विरासत है।
इस विरासत को मजबूती से संभाला गया तो सियासी फलक पर चुनौतियां बढ़नी तय है। इसे सत्ता पक्ष भी समझता है और विपक्ष भी। तीसरा मोर्चा भी इससे वाकिफ है। यही वजह है कि मुलायम सिंह यादव की अंतिम यात्रा में क्षेत्रीय दलों ने एक इतिहास बनाने का प्रयास किया है। तीन राज्यों के मुख्यमंत्री सहित छह क्षेत्रीय दलों के मुखिया एक मंच पर पहुंचे। इस मंच केजरिए एकजुटता का परिचय दिया।
सियासी जानकारों का कहना है कि यह एकजुटता गैर भाजपा- गैर कांग्रेस मोर्चा को ताकत दे सकती है। दूसरी तरफ सैफई में कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खडगे सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी रही। इस मौजूदगी ने यह संदेश दिया कि जिस तरह से मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रीय राजनीति में उसके साथ कंधा मिलाकर चले, उसी तरह से पार्टी साथ खड़ी है। इस पूरी कवायद के बीच सत्तापक्ष ने भी सहानुभूति में किसी तरह की कंजूसी नहीं की है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सैफई स्थित उनके आवास पर जाकर श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरूच की रैली से मुलायम सिंह से अपने गहरे रिश्ते बताते हुए शोक जताया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मुलायम सिंह से खुद के व्यक्तिगत रिश्ते की दुहाई दी। यह भी अनायास नहीं है। देश की सियासत में मंगलवार के घटनाक्रम का दूरगामी परिणाम दिखेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
नेताजी का कद बनाए रखने की चुनौती
सियासी जानकारों का कहना है कि मुलायम सिंह की अंतिम यात्रा में जिस तरह से क्षेत्रीय दलों के नेताओं व कांग्रेस एवं भाजपा नेताओं का जमावड़ा हुआ, वह उनकेकद की स्थिति को बयां करता है। तमाम नेता दलगत स्थिति से ऊपर उठकर व्यक्तिगत रिश्ते के तहत भी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे हैं। अब इस कद को बनाए रखना समाजवादी पार्टी के अहम होगा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब सभी क्षेत्रीय दल गोलबंदी की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। ऐसे वक्त उनकी अंतिम यात्रा में दक्षिण से पश्चिम तक की गोलबंदी उनकी सर्वमान्य स्वीकारता को बयां करती हैं।