प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। एक्सपर्ट्स की मानें तो गर्भावस्था के दौरान करीब 14 फीसदी महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा होता है। वहीं, कुछ महिलाओं में प्रेग्नेंसी के बाद भी मधुमेह बना रहता है। ऐसे में ये सवाल मन में उठाना लाजमी है कि क्या वाकई डायबिटीज से ग्रस्त मां अपने शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग करवा सकती है, क्या ऐसा करना वाकई शिशु के लिए सुरक्षित होता है। आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब फोर्टिस अस्पताल की डॉ शर्वरी डी दुआ (कंसल्टैंट-एंडोक्राइनोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल) से।
मधुमेह या डायबिटीज काफी चिर-परिचित क्रोनिक विकार है। हैरानी की बात यह है कि इसके मामले लगातार बढ़ रहे हैं और भारत को दुनिया की मधुमेह राजधानी कहा जाने लगा है।
एक समय था जब इसे वृद्धों की बीमारी समझा जाता था लेकिन अब जीवनशैली में बदलाव के चलते युवा पीढ़ी भी इस विकार से ग्रस्त होने लगी है। जिन परिवारों में डायबिटीज का इतिहास रहा है या मोटापा, पीसीओडी जैसे रोग पहले से उनके टाइप 2 डायबिटीज रोगी बनने की संभावना शेष आबादी की तुलना में ज्यादा होती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज-
डायबिटीज गर्भ में पल रहे भ्रूण के विकास और स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है, लिहाजा इसका समय पर इलाज करना जरूरी होता है। 30 साल से अधिक उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं के गर्भावस्था के दौरान मधुमेह रोगी बनने की संभावना बढ़ जाती है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। ऐसा आमतौर पर तब होता है जब महिलाएं आमतौर पर अपने शुगर लेवल की जांच नहीं करवाती और गर्भावस्था के दौरान जांच में उनके टाइप 2 डायबिटीज होने की पुष्टि होती है। हालांकि, जेस्टेशनल डायबिटीज से जूझ रही महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग जरूर कराना चाहिए। स्तनपान कराने से शरीर में रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है। साथ ही, जो महिलाएं ब्रेस्ट फीड करती हैं उनमें डायबिटीज टाइप 2 से घिरने का खतरा कम होता है।
बहुत-सी महिलाएं प्रसव के बाद भी मधुमेह रोगी बनी रहती हैं और उन्हें इलाज की आवश्यकता पड़ती है। गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का सबसे सुरक्षित उपाय इंसुलिन है लेकिन कई बार शुगर नियंत्रित करने के लिए मेटफॉर्मिन जैसी दवाओं का प्रयोग भी किया जाता है। इन दवाओं का मां और भ्रूण के स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव होता है, और इसीलिए इनका प्रयोग गर्भावस्था के अलावा स्तनपान कराने के दौरान करने की सलाह भी दी जाती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज कई बार डिलीवरी के बाद अपने आप खत्म हो जाती है, लेकिन पहले से टाइप 2 डायबिटीज या प्री डायबिटीज रोगी होने पर डिलीवरी के बाद भी इलाज जारी रखना होता है।
इंसुलिन या मेटफॉर्मिन स्तनपान कराने वाली मांओं के मामले में भी सुरक्षित होती है, क्योंकि इससे शिशु के शरीर में शुगर लेवल घटने की आशंका नहीं होती है और इसका न्यूनतम प्रतिकूल असर पाया गया है।