घर में छोटे बच्चे हैं, तो फिर आपने भी गौर किया होगा कि वे जल्द ही मोबाइल चलाने में एक्सपर्ट हो जाते हैं। जब तक पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल न दे, तब तक यह संभव भी नहीं है। कहीं न कहीं इसकी शुरुआत अभिभावक ही करते हैं। लेकिन जब एक बार बच्चों को मोबाइल की लत लग जाती है, तो फिर मोबाइल फोन न देने पर गुस्सा करना, रोना, चीखना और चिल्लाना आम बात हो जाती है। बच्चों को बिजी रखने के लिए खुद ही अभिभावक फोन पर गेम्स और वीडियो चलाकर दे देते हैं। हालांकि शौकिया तौर पर कुछ देर गेम खेलने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है, जब यह शौक एक बुरी लत में बदल जाता है, जिसे गेमिंग की लत या फिर गेमिंग डिसआर्डर भी कहते हैं।बीमारी है गेम की लत: गूगल प्ले स्टोर और एपल के एप स्टोर पर कई गेम एप्स मौजूद हैं, जो आसानी से डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं। कई बार इसे शौकिया खेलने के लिए डाउनलोड करते हैं, लेकिन यह बहुत जल्दी लत में तब्दील हो जाती है। आनलाइन या वीडियो गेम की लत नशे से भी बुरी है। खासकर पबजी जैसे गेम बच्चों को हिंसक भी बना रहे हैं। गेमिंग की लत को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमारी यानी गेमिंग डिसआर्डर के रूप में चिन्हित किया है। खासकर बढ़ते बच्चों में गेमिंग की लत उनके आगे बढ़ने में बहुत बड़ी बाधा है। गेमिंग के दौरान अलग-अलग लेवल पार करना बच्चे अपनी उपलब्धि मानते हैं। ऐसे में बिना सोचे-समझे वह गेम खेलते चला जाता है। एक्साइटमेंट के लिए वह कुछ भी कर गुजरने से हिचकता नहीं है। यह खेल मानसिक रूप से भी कमजोर बनाता है। खिलाड़ी असल दुनिया से दूर एक वर्चुअल यानी आभासी दुनिया में होता है। कई बार तो गेम में जीतने पर रिवार्ड की सुविधा भी होती है। देखा जाए, तो यह एक तरह से बच्चों को उकसाने का तरीका ही है।
अभिभावक रहें सतर्क: खासकर कोविड के बाद जिस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई है, उसमें बच्चों को पूरी तरह से टेक्नोलाजी से दूर नहीं किया जा सकता है, लेकिन अभिभावकों को यह ध्यान रखना ही होगा कि बच्चों को कितनी देर के लिए स्मार्टफोन देना है। साथ ही, पबजी जैसे खतरनाक गेम्स को लेकर भी बच्चे को जागरूक करने की जरूरत है। सरकार द्वारा बैन होने के बाद भी इस तरह के हिंसक गेम बच्चे जुगाड़ से डाउनलोड कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों पर भी नजर रखनी चाहिए। आमतौर पर देखा गया है कि जिन बच्चों में गेमिंग की लत होती है, उनकी शारीरिक गतिविधियां काफी कम हो जाती हैं। फिर वे जहां जाते हैं, उनके हाथ में फोन जरूर होता है। वे सबसे कट कर रहने लगते हैं। रात में सोने के समय भी छिपकर गेम खेलते हैं और दिन में ऊंघते रहते हैं। अगर इस तरह की चीजें बच्चों में दिखने लगें तो अभिभावकों को सतर्क हो जाना चाहिए।
इन हरकतों पर रखें नजर: अगर आपका बच्चा आनलाइन एक्टिविटीज के दौरान अगर स्क्रीन छिपाने लगता है, तो फिर सावधान हो जाना चाहिए। खासकर आपके द्वारा पूछे जाने पर बच्चा अगर अचानक स्क्रीन बदल दे, तो समझ जाएं कि वह कुछ ऐसा कर रहा है, जो उसे नहीं करना चाहिए। अगर बच्चा आनलाइन गेम खेलता है, उस एप की ऐज रेटिंग जरूर जांच लें यानी अगर कोई गेम आपके बच्चे की उम्र के लिए सही नहीं है, तो उसे वह गेम बिल्कुल भी खेलने न दें। कभी-कभी आप भी अपने बच्चे के साथ आनलाइन गेम खेलें ताकि आपको पता चल सके कि गेम खेलते हुए आपका बच्चा कैसा व्यवहार करता है। इसके अलावा, बच्चों को आनलाइन गेमिंग से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताएं, ताकि वह भी समझ सके कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।