सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुनवाई के दौरान शुक्रवार को कहा कि धार्मिक स्थल के स्वरूप का पता लगाना कानून में प्रतिबंधित नहीं है। पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून, 1991 किसी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप पता लगाने पर रोक नहीं लगाता। कोर्ट ने यह टिप्पणी मस्जिद पक्ष की तरफ से ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के सिविल जज के आदेश के विरोध में पूजा स्थल कानून का हवाला देने पर की। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी व अन्य देवताओं की पूजा अर्चना का अधिकार मांगने वाली याचिका की सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से वाराणसी के जिला जज को स्थानांतरित कर दी।न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि मामले की जटिलता और संवेदनशीलता को देखते हुए बेहतर होगा कि सुनवाई वरिष्ठ अनुभवी न्यायिक अधिकारी करे। अदालत ने जिला जज से मंदिर पक्ष के मुकदमे की योग्यता पर सवाल उठाने वाली मस्जिद पक्ष की नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश सात नियम 11 के तहत दाखिल अर्जी पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने को कहा।
तब तक अदालत का 17 मई का अंतरिम आदेश लागू रहेगा, जिसमें मस्जिद परिसर में शिवलिंग पाए जाने वाली जगह की सुरक्षा सुनिश्चित करने और मस्जिद में बिना रुकावट नमाज होने देने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जिला जज का फैसला आने के आठ हफ्ते बाद तक भी लागू रहेगा, ताकि पीडि़त पक्ष कानून में उपलब्ध उपचार के लिए ऊंची अदालत जा सके।
वजू के लिए उचित इंतजाम कराया जाए
पीठ ने अपने आदेश में जिला जज से यह भी कहा है कि अगर मस्जिद में वजू का उचित इंतजाम न हो तो वह पक्षकारों से विचार विमर्श करके वजू का उचित इंतजाम कराएं। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि इसका इंतजाम पहले ही कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि देश में शांति और सौहार्द बनाए रखना उनकी प्राथमिकता और जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट में 21 जुलाई को अगली सुनवाई
पीठ ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के आदेश को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद (ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह भी साफ किया कि मामले को जिला जज की अदालत में स्थानांतरित करने का मतलब यह नहीं है कि वह मामले पर सुनवाई कर रहे सिविल जज पर कोई टिप्पणी या आक्षेप लगा रही है।
जिला जज करें सुनवाई
पीठ ने कहा कि यह मामला जटिल और संवेदनशील है, इसलिए उसका मानना है कि 25-30 साल के न्यायिक अनुभव वाला जिला जज इसकी सुनाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की विशेष अनुमति याचिका लंबित रखी है और उसे 21 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया है।
मस्जिद पक्ष ने पूजा स्थल कानून के उल्लंघन का लगाया आरोप
मस्जिद कमेटी के वकील हुजेफा अहमदी ने पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) अधिनियम, 1991 के उपबंधों का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून मंदिर पक्ष की ओर से दाखिल मुकदमे पर सुनवाई करने पर रोक लगाता है।
पूजा स्थल कानून का उल्लंघन
सिविल जज ने मस्जिद में सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के साथ ही 16 मई को एकतरफा सुनवाई करते हुए स्थान को सील करने का भी आदेश दे दिया। यह पूजा स्थल कानून का उल्लंघन है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उपरोक्त कानून में धार्मिक स्थल के स्वरूप का पता लगाने पर प्रतिबंध नहीं है।
कोर्ट ने कहा, अयोध्या मामले में भी इस कानून पर किया था विचार
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने अयोध्या मामले में भी पूजा स्थल कानून पर विचार किया था। इसके कुछ प्रविधान हैं जिस पर व्याख्या की जरूरत है जो कि अभी नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस देश में धार्मिक स्थलों का हाईब्रिड करेक्टर (एक ही परिसर में अलग-अलग धर्म के उपासना स्थल) कोई अनजानी बात नहीं है।
मस्जिद पक्ष ने पूजा अर्चना की मांग पर उठाया है सवाल
मस्जिद पक्ष ने पूजा स्थल कानून का हवाला देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा अर्चना का अधिकार मांगने वाली याचिका की सुनवाई पर सवाल उठाया है। उसने सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत निचली अदालत में अर्जी दाखिल कर पूजा स्थल कानून का हवाला देते हुए कहा है कि यह कानून मंदिर पक्ष के मुकदमे पर सुनवाई करने पर रोक लगाता है।
हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद में सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के आदेश का विरोध करने वाली मस्जिद पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ मस्जिद पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।
शुरू में कोर्ट ने पक्षकारों के समक्ष रखे तीन सुझाव
सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने पक्षकारों के समक्ष तीन सुझाव रखे। पीठ ने कहा कि वह आदेश दे सकते हैं कि निचली अदालत मस्जिद पक्ष द्वारा सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत दाखिल अर्जी पर पहले सुनवाई कर निपटारा करे। दूसरा अर्जी पर निपटारा होने तक सुप्रीम कोर्ट का 17 मई का अंतरिम आदेश जारी रहेगा। और तीसरा आदेश यह दिया जा सकता है कि मुकदमे की सुनवाई जिला न्यायाधीश करें।
मंदिर पक्ष ने सर्वे के विरोध वाली याचिका को महत्वहीन बताया
मंदिर पक्ष की ओर याचिका दायर करने वाले एक पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद कमेटी की सर्वे का विरोध करने वाली याचिका महत्वहीन हो चुकी है क्योंकि जिन आदेशों को चुनौती दी गई है वे लागू हो चुके हैं। वैद्यनाथन ने कहा कि जहां तक आदेश सात नियम 11 के तहत दाखिल अर्जी का सवाल है तो संपत्ति के धार्मिक चरित्र को देखने के लिए सर्वे की रिपोर्ट देखी जानी चाहिए।
वैद्यनाथन की दलीलों का विरोध
मस्जिद कमेटी के वकील हुजेफा अहमदी ने वैद्यनाथन की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल उनकी विशेष अनुमति याचिका एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के खिलाफ है। जिसकी रिपोर्ट जानबूझकर चुनिंदा तरीके से लीक की गई। ऐसी शरारतों को रोकने के लिए ही 1991 का पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) अधिनियम बनाया गया था।
500 साल पुरानी स्थिति बदलने का आरोप
अहमदी ने कहा कि पिछले 500 साल से जो यथास्थिति कायम थी उसे बदल दिया गया। उन्होंने मांग की कि मंदिर पक्ष के मुकदमे पर सवाल उठाने वाली उनकी अर्जी का निपटारा होने तक कोर्ट एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त होने से पहले की यथास्थिति कायम करने का आदेश दे।