प्रभु राम का बन रहा मन्दिर
उसपर ये खिसिया रहे है
अपना रंग दिखा रहे है
ये हम पर पत्थर बरसा रहे है,,,,,,,2
तीन सौ सत्तर धारा हट गई
उसपर ये बौरा रहे है
ये अपना रंग दिखा रहे है
ये पत्थर बरसा रहे हैं,,,,,,,2
तीन तलाक पर जो कानून
बन गया उसकी वजह से
ये गुस्सा रहे हैं अपना रंग दिखा रहे है और ये पत्थर बरसा रहे है,,,,,,,2
सेकुलरिज्म का पहन कर जामा
ये बना रहे है सब को मामा,
झूठा भाई चारे का सदियों से
ये कर रहे है ड्रामा,
ये आज अपना असली रंग दिखा रहे है ये पत्थर बरसा रहे है,,,,,,2
जहर से भरा हुवा है प्याला
ऊपर से है मीठा निवाला,
ये हस हस कर गले लगा रहे है
बड़े प्यार से हमे खिला रहे है
ये अपना असली रंग दिखा रहे है
ये हम पर पत्थर बरसा रहे है,,,,,,2
बनके झूठे सेकुलर हम सब को
ये मीठी लोरी सुना रहे हैं
ये मौत की नीद सुला रहे है
ये अपना रंग दिखा रहे हैं
ये हम पर पत्थर बरसा रहे है,,,,,,2
जागो हिन्द के हिंदुस्तानी अब वक्त नही है सोने का,
बहुत सो लिया बहुत खो लिया
अब वक्त नही कुछ खोने का,
क्यों की वो अपना रंग दिखा
रहे हैं वो हम पर पत्थर बरसा रहे है,,,,,,,2
अब औरंग जेब और खिल्जी की
वंसावली मिटाना होगा ,
जो आतंकी और दंगाई है उनको
सबक सिखाना होगा,
उन सभी नीच दरिंदो का अब
कब्र ही आखरी ठिकाना होगा,,,
क्यों की वो अपना रंग दिखा रहे है वो हम पर पत्थर बरसा रहे है,,,,,,,2
कवि : रमेश हरीशंकर तिवारी
( #रसिक बनारसी)