प्रयागराज । ओम नमः शिवाय के पूज्य गुरुदेव प्रभु जी ने कहा कि सबसे बड़ा धर्म होता है राष्ट्रधर्म। उन्होंने कहा कि जब राष्ट् ही नहीं रहेगा तो कौन धर्म और उसको मानने वाले लोग कहा रहेगे। उन्होंने कहा कि किसका धर्म और किसके लिए धर्म है। ऐसे में सभी लोगों को मिलकर पहले राष्ट्र को मजबूत करना चाहिए। इस दौरान सभी जाति बंधन, सामाजिक कुरीतियों और विकृतियों को मन मस्त से निकाल देना चाहिए। पूज्य गुरुदेव ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की एक सीमा होती है। सीमा के अंदर सरकार नाम की एक सार्वभौमिक होती है उसके बाद राष्ट्र का विकास होता है। विकास होने के बाद उसमें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च बनते हैं तब धर्म शुरू होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र से धर्म होता है धर्म से राष्ट्र नहीं । ऐसे में प्रत्येक भारतवासी को चाहिए कि वह आगे आए और अपने राष्ट्र को मजबूत करके अपने राष्ट्र धर्म को निभाएं। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह से पूरे विश्व में अशांति, असहिष्णुता और एक ऐसे वर्ग विशेष का प्रभाव बढ़ रहा है जिससे कि आने वाले समय में नहीं मुश्किले और बढेगी इसी में सबसे जरूरी है कि सभी लोग मिलकर राष्ट्र को मजबूत करें और उसके धर्म का पालन करें। यह बातें ओम नमः शिवाय के पूज्य गुरुदेव ने माघ मेला के परेड स्थित त्रिवेणी मार्ग पर लगे शिविर में श्रद्धालुओं और स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए गुरुवार को कहा । उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार हो वह पहले राष्ट्र को मजबूत करती है। राष्ट्र के मजबूत होने के बाद लोगों के विकास के लिए काम करती है जो लोग भी रहते हैं अपने- अपने धर्म का पालन करते हैं । हम लोगों को ऐसे में सबसे जरूरी होता है कि राष्ट्र धर्म ऐसे में हम लोगों को चाहिए कि सबसे पहले हम अपने राष्ट्र धर्म का पालन करते हुए राष्ट्र को मजबूत करें। पूज्य गुरुदेव ने बताया कि वह 40 साल से माघ मेला, कुंभ मेला और अर्ध कुंभ मेला में श्रद्धालुओ को खाने की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं । उन्होंने बताया कि कोविड के पहले और दूसरे चरण में प्रयागराज, कानपुर , लखनऊ और अयोध्या में एक-एक दिन में लाखों लोगों को खाने की व्यवस्था की गई थी। जो दूसरे राज्यों से अपने वाहनों से अपने घरों को जा रहे थे। प्रशासन और पुलिस जो लाखों छात्रों राजस्थान के कोटा और दूसरे प्रदेशों से बसों में भरकर लाई थी या ट्रेनों में भरकर श्रमिकों को लाई थी उन लाखों लोगों को भी रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और निर्धारित स्थानों पर दिन-रात खाना खिलाया गया और नाश्ता दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रकृति अपना सामंजस्य स्थापित करती है। ऐसे में सभी लोग प्रकृति से किसी भी प्रकार का छेड़छाड़ ना करें जिससे कि उसका असर मानव समाज या प्रकृति पर बहुत बुरा पड़ता है। गुरुदेव ने बताया कि माघ मेला के दर्जन भर स्थानो पर दिन -रात अन्नक्षेत्र चल रहा है।
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