माँ भारती तेरी सेवा का हम
सब से सुन्दर तोहफा पा गये,
तेरी आन और शान के खतीर
हम अपनी जान गवा गए,
माँ लगा गले हम आगये
बन माटी तुझ में समा गए,,,,2
माँ भारती तेरे आँचल की छांव
में देख हम समागए ,
ओढ़ चुनर वो तीन रंग का
तेरी गोंद में वापस आगये,
तेरी आन शान के खातीर
बन माटी तुझमे समागये,,,2
माँ लगा गले हम आगये
बन माटी तुझमे समागए,,,,,2
इस माटी का लगा तिलक
हम इस माटी में समागए
माँ तेरे चरणों मे हम
अपने प्राणों की बाज़ी लगा गए,,,,,,2
माँ लगा गले हम आये ,
बन माटी तुझ में समा गए,,,,,,2
ओढ़ तिरँगा तन के ऊपर
तेरे पॉवन चरणों मे आगये,
तेरे एक एक रज कण में माँ
हम बन के माटी समागये,,,,2
माँ लगा गले हम आगये
बन माटी तुझ मे समागये,,,2
अब अंत मे यही कहूँगा
वो याद बहुत ही आते है,
वो पल पल हमें रुलाते हैं,
हम लाख कोसिस कर ले
पर उन्हें भुला नही पाते है,
जो लौट के घर नही आते हैं
शरहद पर प्राण लुटाते हैं,,,,,2
माँ लगा गले हम वो गये
बन माटी तुझमे समागये,,,,,2
जय हिन्द जय हिंद
जय भारत जय माँ भारती,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )




