प्रयागराज। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा को एक माला के रूप में पिरोकर मुक्ता काशी मंच व हाट प्रागंण के माध्यम से जन सामान्य के बीच 01 से 12 दिसम्बर 2021 तक आयोजित राष्ट्रीय शिल्प मेले के छठे दिवस पर भारी संख्या में प्रयागराज के नगर वासियों ने मेले का भरपूर आनन्द उठाया। भदोही के कालीन शिल्प के साथ ब्लैक पोट्री तथा बास से बने शिल्पों की विक्रय की अधिकता दिखी। वहीं महिलाओं के द्वारा चन्देरी सिल्क की साड़ियों और ट्राइफेड की सामाग्रियों को भी दर्शकों द्वारा पसन्द किया गया। सायंकालीन सभा में मुक्ताकाशी मंच से वाराणसी की माटी की सोंधी महक को अपनी मीठी आवाज और गाने के अलग अंदाज में बिरहा गीत के माध्यम से बहुचर्चित बिरहा गायन मन्ना लाल यादव और उनके साथी कलाकारों ने ढोलक की थाप और फार की मधुर तान पर पूर्वी तर्ज में ‘‘बंगला के जंगला से झाकेली किरनिया हे कि, भोरवे-भोरवे न’’ को प्रस्तुत कर दर्शकों में एक अलग समा बांध दी। वही लोक नृत्यों की श्रृंखला में वीरेन्द्र सिंह गौड़ और उनके साथी कलाकार जो किशनगढ़ से पधारे है ने चरी व घुमर नृत्य की प्रस्तुति से दर्शकों के मन को मोहा। साथ ही आजमगढ़ से आये गौड़ जनजाति के लोक नृत्यों कहरवा और रामायणी कहरवा की प्रस्तुति अभिराज गौड़ और उनके दल द्वारा प्रस्तुत की गयी। बिहार के कलाकारों द्वारा कृषि पर आधारित भाव नृत्य (उमरल बदरिया चमके बिजरिया हो, दईया रिम-झिम बरसे लागल सांवरिया) ने दर्शकों को खूब रिझाया। वहीं मध्य प्रदेश के खडवा से आयी साधना उपाध्याय और साथी कलाकारों द्वारा भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती की आराधना जिसे चैत्र मास की नवरात्रि में पूरे निमाड़ अंचल के लोक भक्ति भावना से एक अलग ढसकभरी मस्ती में गांव के देवालयों में करते है। जिसे गडगौर नृत्य के नाम से जाना जाता है, की प्रस्तुत दी। सभी प्रस्तुतियों का दर्शकों ने भरपूर आनन्द उठाया और विभिन्न प्रान्तों की लोक विधाओं से परिचित होते हुए उनकी रहन-सहन व भाषा और परिधान से भी परिचित हुए।
कार्यक्रम के अन्त में केन्द्र निदेशक ने सभी उपस्थित दर्शकों एवं श्रोताओं का भी धन्यवाद ज्ञापित किया।