कटु सत्य पर आधारीत : ये गद्दारो की टोली हैं,,,,

हर गल्ली हर शहर के अन्दर
छुपके बैठी यहाँ हिन्द में देखो गद्दारो की टोली हैं,
ए वक़्त वक़्त पर वक़्त
देखकर खेलते खून की होली हैं
ये गद्दारो की टोली हैं,,,,,,2
ये वतन के दुश्मन राष्ट्रद्रोही हैं
ये सदा ही देश को देते धोखा हैं,
इनके अंतर्मन में भरी है नफरत
ये ऊपर से प्रेम दर्षाते हैं,
ये जैसे ही मौका पाते है
ये गर्दन काट गिराते हैं,
ये गद्दारो की टोली हैं,,,,,2
पाकपरस्ती इन नीचो के मन में
भरी पड़ी हैं, ये पाक का ही गुण गान करे,
ये हिन्द में रहते हिन्द की खाते
हिन्द में ही दौलत शौहरत नाम कमाते,
पर ये जब भी मौका पाते है ये हिन्द को ही नीचा दिखाते है,
ए गद्दारो की टोली हैं,,,,,,2
हिन्द में हिन्दू मारे जाए तो
ये सब जश्न मनाते है, शेना
के जवानों की शहादत  पर ये सारे लोग सवाल उठाते ,
ये गद्दारो की टोली हैं ये अपना रंग दिखाते हैं,,,,,,2
बन के सेकुलर देखो यारो ये
ये अपना दांव बिठाते हैं
ये जैसे ही मौका पाते है
ये जमकर लाशें  गिराते हैं
ये गद्दारो की टोली हैं,
ये अपना रंग दिखाते है,,,,2
रहो सजग अब जागो भाई
चारो ओर यहाँ बैठे है कसाई,
ये अपना घात लगाएंगे धोखे से लाश गिराएंगे , बनके सर्कुलर काट गला ये पाक का झण्डा लहरायेंगे ,
ये गद्दारो की टोली हैं
ये अपना रंग दिखाएंगे,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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