डा0 कुसुम पांडेय
जीवन जीने की कला
हम हर दिन सीखते हैं।
हर पल स्वयं से उलझते हैं,सुलझते हैं
फिर आगे बढ़ते हैं।
यह नहीं कहा जा सकता कि जीवन
सदैव एक ही दिशा में चलता है
नित नए संघर्षों और अंतर्द्वंदों में ही
हम सबका जीवन गुजरता है।
जिन्हें आज हसरत भरी निगाहों से निहार रहे हैं
जिन पर अपना प्यार लुटा रहे हैं
यह पता ही नहीं है कि
हम कब के उनकी नजरों के कांटे बन चुके हैं
वो हमें अपने दिल से कोसों दूर कर चुके हैं।
हम दिल में प्यार का सागर लिए
उनके पीछे पीछे भागे जा रहे हैं
और वो हमसे बचने के तमाम उपाय तलाश रहे हैं।
हाय रे अंतर मन की व्यथा
अब किसी से कही नहीं जाती है
यह पीड़ादायक व्यथा सही नहीं जाती है।
कोई अपना सा लगता भी नहीं है
हर शख्स मुखौटा पहने और पीठ पीछे खंजर लिए खड़ा है
लेकिन फिर भी आशा का संचार है,
जीवन गुलजार है,
मन खुशियों से सराबोर है।
कोई तो आंतरिक और मानसिक शक्ति साथ दे रही है
जो दिखती तो नहीं है पर महसूस हमेशा होती रहती है।
यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य है
कोई हमेशा आपका हाथ थामे है
यह सत्य मन की आंखों से अनुभव कीजिए
और उसी के सहारे जीवन को आगे लेकर चलिए।