आवो प्राण प्रिये मैं तुम्हारा
शब्दों से सिंगार करू,
दिल कहता हैं तुम्हे शब्दो
से सजाकर जीभर कर तुमसे
प्यार करू,
आजावो तुम प्राण प्रिये मैं आज तुम्हारा शब्दो से खूब सिंगार करू,
मृग नैनी से नयन तुम्हारे
केश ये काली घटा हैं,
अधर तुम्हारे कमल पंखुड़ी
मलमल जैसे गाल हैं,
संगेमरमर सी तेरी काया
तू चितवन चित चोर हैं,
मधुर कोयलिया से तेरे
मीठे स्वर हैं तू मन को मेरे अति
भाती हैं,
तूम हो कामिनी गजगामिनी
तुम ही कामकला कामेश्वरी,
मनमोहिनी मनभावनी तुम
ही हो मन्दाकिनी ,
तुम्हे देखकर प्राण प्रिये
मेरे कोरे मन के कागज
पर एक प्रेम गीत उभर आता हैं,
शाम सबेरे यह मेरा मन बस वही
प्रेम गीत गाता हैं,
आवो प्राण प्रिये मैं तुम्हारा शब्दो
से सिंगार करू,
रसिक लेखनी
करे कल्पना मैं शब्दो से सिंगार करू,,,,,,
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )