दिनेश तिवारी
हर विषय पर अडानी,अंबानी,टाटा, महिंद्रा जैसे कई अन्य कॉरपोरेट हाउस को भद्दी-भद्दी गाली देने और कोसने वालों में से कितने लोगों को पता होगा कि इन कॉरपोरेट हाउसेज की वजह से भारत में कितने लोगों की आजीविका चलती है,इन्होंने देश मे कितनों को रोजगार दे रखा है,और भारतीय अर्थव्यवस्था में इनका योगदान कितना है ? किसान का उगाया अन्न पैसों से खरीदकर आज तुम उन्हें कृतज्ञता से अन्नदाता कह रहे हो,तो वह अच्छी बात है, किन्तु जो तुम्हें रोजगार देकर बदले में तुम्हारे परिवार के भरणपोषण व बच्चों की शिक्षा और तुम्हे समाज मे सम्मान जनक जीवन यापन के साधन जुटाने हेतु धन दे रहा है उसे अपशब्द कहकर किस प्रकार की कृतज्ञता दर्शा रहे हो। अमरीका से आकर अमेज़ॉन वाला कमा के ले जाये,चीन से आकर ओप्पो,वीवो और पेंटियम वाला कमाकर ले जाये,इंग्लैंड से आकर वोडाफोन वाला कमाकर ले जाये पर यहाँ रहकर अपना पैसा लगाकर अपने लोगों को रोजगार देने वाला अंबानी,अडानी,टाटा और बाबा रामदेव न कमा लें,इसी वजह से विपक्ष के लोग परेशान है। चीन जैसा देश भारत की संप्रभुता पर खिलवाड़ करें,भारतीय सैनिकों की हत्या करें तो क्या भारतीय नागरिकों को सम्मान मिलेगा।
135 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में मात्र 1.46 करोड़ व्यक्ति ही इनकम टैक्स भुगतान करते हैं,जबकि इन कॉर्पोरेट द्वारा दिये टैक्स से सरकार की आय 6.62 लाख करोड़ की थी 2018-19-20 में, किसानों को सब्सिडी की बिजली,पानी,बीज,खाद, यूरिया,फसल का 80% बीमा और बैंक अकाउंट में दी जाने वाली किसान सम्मान निधि और उनसे आवश्यकता से कहीं अधिक की जाने वाली सरकारी खरीद का एक बहुत बड़ा भाग इन कॉरपोरेट हाउसेज के टैक्स के धन से फंड होता है,कोरोना काल में पूरे विश्व में सबसे कड़ाई से लॉक डाउन भारत में था,सरकार ने 5 माह तक 80 करोड़ लोगों को निःशुल्क गेहूं ,चावल के साथ दाल, चना,अनाज उपलब्ध करवाया,उसका भी एक बड़ा भाग इन्हीं कॉरपोरेट्स द्वारा चुकाए टैक्स के पैसे से आया था। यह सत्य है कि भारत कृषि प्रधान देश है जहां पर आज भी 65% से ज्यादा लोगों के पास कृषि ही प्रमुख आय हैं किसान 4 माह जबरदस्त परिश्रम कर अपने खेतों में काम करता है और फसल तैयार करता है पिछले 70 सालों से किसान को किसी भी सरकार में उपज का सही दाम नहीं मिल पाया जो भी सरकारें रहीं वह कॉर्पोरेट घराने के इशारे पर नाचते रहे,देश की राजधानी दिल्ली और लखनऊ के एसी के बंद कमरों में किसानों के लिए नीतिनियंता नीति बनाते रहे हैं, जो वास्तव में अपर्याप्त रहा है ,इसमें कोई संदेह नहीं है जब अटल बिहारी वाजपेई जी देश के प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने किसानों की चिंता किया और एक कारगर नीति तैयार करने का प्रयास किया पहले गांव से प्रमुख सड़कों पर आने के लिए मार्ग नहीं थे तो उन्होंने गांव को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना का एक ऐसा सौगात दिया था जो आज गांव के विकास में अग्रणी भूमिका बन चुका है। गांव के गरीब किसानों के खाते नहीं खुलते थे उनकी परेशानियों को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की सत्ता की बागडोर संभालते ही सबसे पहले जन धन योजना निःशुल्क बैंकों में खाता खुलवा कर गरीब और किसानों का बहुत बड़ा सम्मान दिलाया था।कांग्रेस ने गरीबों के इलाज के लिए तीस हजार रुपए का स्वास्थ्य बीमा दिया था जब यूपी में अखिलेश यादव की सरकार थी तब स्वास्थ्य बीमा बंद हो गया। यूपी में गरीबों के इलाज की चिंता कांग्रेस , समाजवादी,बसपा आदि संगठनों को नही थी।
आज मोदी सरकार आयुष्मान भारत योजना के तहत पांच लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा देकर गरीबों के जीवन में क्रांति ला दी।किसानों के ऊपर लगातार प्रकृति की मार ने कमर तोड़ रही थी ऐसे समय मोदी सरकार ने सीमांत और लघु सीमांत किसानों को छः हजार रुपए सालाना देकर खाद बीज आदि कार्यो के लिए संजीवनी दे दिया। वैश्विक कोरोना महामारी के कठिन दौर में यूपी सरकार ने कदम बढ़ाकर दिहाड़ी मजदूरों को श्रम विभाग में पंजीकरण कराकर एक हजार रुपए देने का कार्य किया और हर वर्ग की महिलाओं के जनधन खाते में उज्जवला योजना का 500-500 रुपए तीन महीने तक देकर मिशन नारी शक्ति को मजबूत करने का कार्य किया। प्रयागराज में दो सालों से लंबित विधवा,वृद्धा,दिव्यांग आदि पेंशन को लॉक डाउन के समय स्वीकृति देते लक्ष्य से ज्यादा पेंशन जारी कर दिया जो कई किसानों के जीवन में यूपी भाजपा सरकार ने रोशनी का प्रकाश दे दिया। किसान बिल 2020 से यूपी के किसानों को नई ताकत दे दिया।
सन 2013 तक 6 खाद्य वस्तुओं पर एमएसपी लागू थी जो अब मोदी सरकार ने 24 वस्तुओं पर एमएसपी निर्धारित किया है पिछले 70 सालों से एमएसपी पर ही किसान अपने उपज को सरकारों के क्रय केंद्रों में देते रहे है। प्रधानमंत्री मा0 मोदी जी का सपना था कि एक देश एक बाजार हो किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिले और उनकी आय दुगनी हो ताकि भारत का किसान समृद्ध और खुशहाल हो। प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना जिसमें अभी तक देश के लगभग 21 लाख किसान पंजीकृत हुए हैं जिनको 60 वर्ष आयु प्राप्त करने के बाद पेंशन की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है।यह बहुत बड़ा किसानों के लिए सौगात है।बड़ी आयु होने के बाद कार्य करने की शक्ति में शिथिलता आने के बाद पेंशन मिलने से जीवन खुशहाल होंगे। नई कृषि बिल में किसान अपनी स्वेच्छा से खाद उत्पाद बनाने वाली कंपनियों या फुटकर खरीदारों और निर्यातकों के साथ अपनी शर्तों पर अपनी उपज की बिक्री के लिए सीधा करार या व्यवसायिक समझौता कर सकते हैं किसान की स्वेच्छा और सहमति से ही अनुबंध का प्रावधान किया गया है यह अनुबंध केवल 1 वर्ष या 1 वर्ष में होने वाली फसलों पर ही लागू होगा।अनुबंध समाप्त करने का अधिकार केवल किसान का होगा वह कभी भी उसे समाप्त कर सकता है। संविदा कृषि में किसानों खरीदार के बीच लिखित करार के बाद 2/3 दाम उपज से पहले और शेष धनराशि उपज देने के बाद 3 दिनों के अंदर भुगतान की कानूनी व्यवस्था की गई है। यह करार केवल फसल उपज का है जमीन का नहीं है। जमीन पर किसान का मालिकाना हक सुरक्षित रहेगा करार में न तो जमीन गिरवी रखी जा सकती है और ना ही लीज पर दी जा सकती है और ना ही उस पर कोई अस्थाई निर्माण किया जाएगा,अगर कोई निर्माण करता है तो उसके ऊपर कानूनी कार्रवाई का कठोर प्रावधान सरकार ने किया है।
सबसे बड़ी बात है स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार ने हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन द्वारा तैयार कराई है। अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह स्वामीनाथन की प्रशंसा करते थे और कहते कि लागू होने से किसानों की तकदीर और तस्वीर बदल जाएगी। अचानक ऐसा क्या हुआ कि स्वामीनाथन की रिपोर्ट को 8 वर्षों तक ठंडे बस्ते में डाल दिया। भारत के प्रधानमंत्री ने स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू किया तो कांग्रेस जैसी पार्टी देश में लंबे समय शासन करने वाले लोग किसानों को नई कृषि बिल को दुश्मन बताकर आंदोलन की राह में घी डालने का काम कर रहे है। कृषि कानूनों में सुधार हेतु वर्ष 2000 से लगातार विचार-विमर्श हो रहे थे सभी राजनीतिक दल कृषि सुधार की वकालत करते आए हैं तथा उन्होंने अपने चुनाव घोषणा पत्रों में व्यापक सुधार का वादा किया है लगभग सभी वर्तमान कानूनों में सुधार पर बल दिया हैं।वर्तमान कानून बनाने के पूर्व सरकार ने एक लाख से अधिक किसान संगठनों,विशेषज्ञों,मुख्यमंत्रि यों सहित राज्य सरकारों से चर्चा भी की थी। लेकिन आज विपक्ष विशुद्ध राजनीति कर रहा है जबकि मोदी किसानों के विकास और हितों के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध है।कृषि कानूनों को समर्थन देकर भारत के लगभग 80 करोड़ अन्नदाताओं के भविष्य को उज्जवल बनाने का सरकार का दृढ़ संकल्प निश्चित तौर से भारत को समृद्धशाली बनाएगा।
किसान तब खुशहाल होगा जब उसे खाद पानी बिजली के साथ अपने उपज का सही दाम समय पर मिल जाय।किसान बड़े परिश्रम और मेहनत से अपने खेतों में जान लगाकर खेती करता है। पिछले 70 सालों से भारत में विकास के नाम पर कांग्रेस,सपा और बसपा सरकारों ने किसानों की जमीन पर आनन फानन जबरन जमीनों का अधिग्रहण कर बेदखल कर दिया और इतना ही नहीं किसानों के विरोध करने पर किसानों के ऊपर मुकदमे भी लाद दिए गए। सरकार ने किसानों की जमीन तो ले ली और नहर,सड़क,बड़ी बड़ी ऊंची ऊंची इमारतें,उद्योग आदि खड़ी हो गयी। कहीं कहीं तो कम्पनियों के नाम हो गए, किसानों पर मुकदमे भी लाद दिया जाए मगर आज भी उन जगहों पर एक भी ईंट भी नहीं रखे गए हैं।कई जगह उद्योग बंद होकर धूल फांक रहे है। यह बहुत विचारणीय प्रश्न है राजनीति पार्टी के नेताओं पर लादे गए मुकदमें को उनकी सरकारे वापस ले लेती है।मगर किसानों पर लादे गए मुकदमें कौन वापस लेगा यह आज भी शोध का विषय है। किसानों की जमीनें चली गयी कई किसान वास्तव में तंगी के हाल में जीवन जीने पर मजबूर है,अगर किसी किसान ने बैंक या साहूकार से कर्ज लिया है तो अदा न करने पर भारी दबाब के बीच आत्महत्या करने पर मजबूर है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई शुरू के वर्षों में अच्छे परिणाम के संकेत देने के उम्मीद की किरण थे,किंतु अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए दूर होता जा रहा है क्योंकि कार्य करने वाली एजेंसियों ने मनमाने तरीके से कार्य का अंजाम देकर किसानों को दूर कर दिया। एजेंसियों ने किसानों से माल कमा कर मालामाल हो गए। कभी भी नीति नियंताओं ने कमियों पर ध्यान नहीं दिया नतीजा यह हुआ कि आज कोई भी किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ नहीं लेना चाहता आखिर क्यों ऐसा क्यों हो रहा है क्या कभी नीति नियंताओं और सरकार में बैठे लोगों ने एसी के कमरे से निकलकर खेतों के मेड़ो में जाकर किसानों के दर्द को समझने का प्रयास किया। इन मुद्दों पर किसी भी राजनीतिक दल का कोई लेना देना नहीं है। जहां पर किसानों के हितों के लिए बिल है तो उन पर उनका विरोध राजनीति रूप से चल रहा है किसानों से लेना लादना नहीं केवल राजनीति करते है। जहाँ किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए वहाँ नही खड़े होते है। प्राइवेट कम्पनियों को क्रय केंद्र का लाइसेंस देकर किसानों के माथे पर शिकन दे दिया।सरकार के नीति नियंताओं को समय समय पर समीक्षा करनी चाहिए ताकि कोई भी गड़बड़ी होने पर कठोर कार्यवाही होने से सबक मिलता है,तो किसान खुशहाल होने पर ही भारत समृद्धशाली होगा।
किसान भगवान की आस में पूरा जीवन खड़ा है।