घोड़ी बिकगई गद्दी के भाव
ठंडे जल से जल गया गॉंव
चोर उचक्के जमकर बैठे
साहूकार सभी भागे उल्टे पाँव,
यहाँ बड़े गजब के इन्सान हैं,,,2
गंगा जल से देखो घबराते
मदिरा का सब पड़ते पांव,
दूध दही मेंटी में सड़ रही
दारू बिक रही हर एक गांव,
साधु संत को गाली देते और
नीच दरिन्दों का सब पड़ते पाँव,
यहाँ बड़े गजव के इन्सान हैं,,,,2
सज धज कर किन्नर रौब जमाये
सुन्दर नारी हुई बेकार ,
खूनी कतली मौज कर रहे
सीधे सादे लोग खाते है मार,
यहाँ बड़े गजब इन्सान हैं,,,,2
अन्धो की नगरी में देखो
काना सब से श्याना है,
और गूंगो की बस्ती में
हकले गाते गाना हैं,
यहाँ बड़े गजब के इन्सान हैं,,,,2
यहाँ समझदार को मूर्ख
समझते,और मूर्खो को कहते
ये तो बहुत बड़ा विद्द्वान हैं,
और शैतानो की पूजा करते
साधु को छकते शैतान हैं,
यहाँ बड़े गजब के इंसान है,,,,,2
कर जुगाड़ करे चाय पे चर्चा
बचा रहे है जेब का ख़र्चा ,
कोई जमकर बात करे और
किसी को लग गया माघी मरचा
जैसे तैसे कर जुगाड़ यहाँ सब चला रहे हैं अपना खर्चा,,
यहाँ बड़े गजब के इन्सान हैं,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी)