नर नारी में होड़ मची है
कौन यहाँ बेशर्म हैं,
शीतलहरी को लू बताते
कहते बहुत ही गर्म
जरा गौर से देखो यारो
दोनो ही बेशर्म हैं,
ये बेशर्मी का दौर हैं
बात नही कुछ और हैं,,,,,,2
नारी के सर का ताज केश हैं
जिसे वो कटवाती हैं,
नारी के सम्मान को वो
खुद से खुद ही घटाती हैं,
रूप रंग व भेष बदलकर
खुद को मर्द दिखाती हैं,
ये बेशर्मी का दौर हैं,
बात नही कुछ और हैं,,,2
पुरषों को भी अब क्या कहना
वो भी करते बड़ा कमाल हैं,
नथ पहने और चोटी बान्धे
उनके लम्बे लम्बे बाल हैं,
चटक मटक सब नारी जैसे
करते बड़ा बवाल हैं,
ये बेशर्मी का दौर हैं,
बात नही कुछ और हैं,,,,2
अब बतलाओ इन दोनों में
कौन बड़ा बेशर्म हैं,
ये बेशर्मी का दौर हैं
बात नही कुछ और हैं,
सच कहताहु मैं ये यारो
ये बेशर्मी का दौर हैं,
बात नही कुछ और हैं,,,,,2
कटे फ़टे कपड़े दोनो ही
पहने अपना अंग दिखाते है,
गुटका सिगरेट बियर रम
पी खाकर देखो दोनो ही रौब जमाते हैं,
ए बेशर्मी का दौर हैं बात नही कुछ और हैं,,,,,2
मर्यादा की सारी सिमा दोनो
ने मिलकर तोड़ा है
इस बेशर्मी के दौर में दोनों
का योगदान थोड़ा थोड़ा हैं,
लाज शर्म और हय्या नही है
किसी को कुछ भी पता नही हैं,
ये बेशर्मी का दौर हैं
बात नही कुछ और हैं,,,,2
भौतिकता और नैतिकता देखो पाठ पढ़ाते है , नयेयुग का देके हवाला वो बेशर्मी फैलाते है,
खुद को मॉडल बताते है
और उल्टी सीधी हरकत कर के
ख़ूब बेशर्मी फैलाते है,
ये बेशर्मी का दौर हैं
बात नही कुछ और हैं,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )