हिन्दी व्यंग कविता : धज्जियां उड़ा रहे हैं

बाबा के नाम के  आड़ में खुद का कानून चला रहे है, देखो कुछ खास लोग कानून की धज्जियाँ उड़ा रहे है,  सत्य व अहिंसा को ठेंगा दिखा रहे है, वो सभी खुद का एक अलग कानून चला रहे है,,,,2
पी एम को देते गाली नियत हैं इनकी काली, ये वर्दी धारियों को मौत की नींद सुला रहे है, माशूम जिंदगियों को अपना शिकार बना रहै है , ये कानून के भक्षक बाबा की कसम खा रहे है , देकर धोखा देश को खुद का कानून चला रहे है,,,,,,2
जुबान इनकी मीठी हैं नियत इनकी तीखी हैं, ये सारी आदते इन्होंने अंग्रेजो से सीखी हैं , उपर से ये देश भक्ति व प्यार सभी को
दिखाते है , भाई चारे का पैगाम ये
लोगो तक पहुचाते हैं,,,,,2
अंतर्मन में मचा द्वन्द हैं  दोहरी इनकी चाल हैं, ऊपर ऊपर प्यार
दिखाते अंदर से करते घात हैं ,देश  धरा माटी मॉनव को धोखा देना यही तो इनकी पहचान  हैं , इनका  खुद का नियम कानून हो यही इनका ईमान हैं ,आगे मैं और क्या बोलू ये सब नियत के बेईमान हैं, बाबा के आड़ में खुद का कानून चला रहे हैं, ये धज्जियाँ उड़ा रहे है,,,,,,2
आतंकवादी की सेवा करते
सेना पर पत्थर बर्षाते हैं, आगजनी आतंक मचाने सड़को पर आजाते हैं, देख तिरँगा ये जलते है गहरी चाल ये चलते हैं, बाबा की कसम ये खाते हैं खुद का कानून चलाते है,ये धज्जियां उड़ाते है,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
            (  रसिक बनारसी )
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