कुछ लोग यहाँ पर ऐसे है
जो खुद के घर के आंगन में ही
गन्ध फैलाते है, वो जिस थाली
में खाते है वो लोग उसी थाली में
थूक कर आते हैं,,,,,2
वो जन्म भूमि और जननी का
सदा ही मान घटाते हैं,
वो अवसरवादी बड़े फ़सादी
वो जमकर कोहराम मचाते है,
वो जिस देश में रहते है
वो उसी देश में आग लगाते है,
वो जिस थाली में खाते है
वो उसी में थूक कर आते हैं,,,,2
वो झुंड बनाकर वार करे
वो पीठ पीछे से प्रहार करे,
वो शब्दो से शहद बरसाते हैं
वो मौका देख आग लगाते है,
वो जहर बुझी एक खंजर है
वो बनाते मौत का मंजर हैं
वो जिस थाली में खाते है
वो उसी में थूक कर आते है,,,,,2
वो पक्के वाले धोखेबाज हैं
वो घात लगार घात करे, औऱ
जो उनको सहारा देता हैं
वो खुद बेसहारा हो जाता हैं,
क्यो की वो लोग अपनी कटरता
पर आजाते हैं, और वो जिस थाली मे खाते है ,
उसी में थूक कर आते हैं,,,,,,2
वो अपने धर्म समुदाय के खातीर
सभी को देते गाली हैं,
उनकी नजरो में हैं कटरता
वो सच मे बड़े बवाली हैं,
वो जिस घर मे रहते है वो
उसी में आग लगाते हैं वो
जिस थाली में खाते है उसी में थूक आते हैं,,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )