हिन्दी कविता : मौत हैं,,,,मौत हैं,,,,,

मौत एक अडिग सत्य हैं
मौत अंतिम तथ्य हैं
इस पूरे संसार में सब की होती
यही गत्य हैं
मौत नही मिथ्या हैं
मौत ही परम सत्य हैं,,,,,,,2
मौत कभी मरती नही
मौत कभी डरती नही
मौत खुद से ज्यादा किसी
और पर भरोसा  करती नही,
मौत ही मौत हैं मौत कभी
कही रुकती नही ,,,,,,,2
मौत कभी किसी से भयभीत नही होती है
मौत से इस जहा में किसी को
प्रीत नही होती हैं
मौत इस संसार में किसी की
मीत नही होती हैं,
मौत के बाद इस जीवन
में कोई हार जीत नही होती हैं,,,,,,2
हर रोगी काया को बहुत
भाती मौत है,
स्वस्थ लोगो को बहुत डराती
मौत है,
हर गल्ली हर मोहल्ले से
रोज आती जाती मौत हैं,
पूरे संसार में हर घर से मौत
की बड़ी यारी हैं,
कोई उससे बीच नही सकता
क्यों की मौत की सब से पक्की
रिस्तेदारी हैं,,,,,,,2
इस धरा पर सब को
बहुत सताती मौत हैं,
जीवन की हर सांस को
चुराती मौत हैं,
पल पल इस जिन्दगी को
डराती मौत हैं,
कभी किसी के मन को
नही भाती मौत है,,,,,,,2
इस आत्म को परमात्मा से
मिलाती मौत हैं,
इस जहा की सारी सच्चाई
दिखाती मौत हैं,
अपने पराए के फर्क को
बताती मौत है,,,,,,,2
हर इंसान को खुद से ही
खुद मिलाती मौत हैं,
कभी हसाती तो कभी खूब
रुलाती मौत हैं,
इस झूठी जिन्दगी को
सत्य का आइना दिखाती
मौत हैं,,,,,मौत हैं,,,,,मौत हैं,,,,2
कवि: रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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