मैं बचपन मे जिनकी उंगली पकड़ कर चला,
जिनकी गोदी में खेल कर
मेरा जीवन ढला,
वो मेरे भाग्य विधाता सब से बलवान थे,
वो मेरे लिए मेरे पिता भगवान थे,,,,,,2
जिनके आदर्शों में सदा मेरा जीवन ढला
और जिनकी परछाईयों में मेरा ये जीवन पला,
वो सदा हर लेते थे बचपन मे मेरी हर बला,
वो मेरे लिए ईस जग में सब से महान थे,
मेरे पिता मेरे खातीर मेरे भगवान थे,,,,,2
जो मेरी हर तमन्ना करते थे पूरी , जो खुद से ज्यादा
मेरी हर बात को समझते थे बहुत जरूरी,
जिन्होंने मेरे सर सपने कर दिए पूरी,
वो मेरे लिए इस जग में सब से सही इन्सान थे ,
वो मेरे पिता मेरे भगवान थे,,,,,2
आज वोतो नही है पर उनका आशीर्वाद हैं,
जो मेरी हर सांस के संघ मेरे साथ है,
मेरे जीवन की हर सांस उन्हीं की दास हैं,
वो मेरे पिता मेरे भगवान हैं
इस सारे जहां में कोई नही उनके समान हैं,,,,,2
उनका आशीर्वाद बनकर परछाईं हर पल हर कदम पर चल रहा मेरे साथ है,
इस जहाँ में सब से अलग
मेरी बात है ,
मेरे सर पर आज भी हर पल मेरे बाबू जी का हाथ हैं,
मेरे भगवान हर पल मेरे साथ,इसलिए सब से निराली मेरी ठाठ हैं,
मेरे बाबू जी हर पल मेरे साथ है,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी ( रसिक बनारसी )