हिन्दी कविता : बटवारा भाग 2

एक ही वन्श के दो अंशो में
हो गया विध्वंश हो गया विध्वंश,
धन दौलत  जागीर के खातीर ,
वन्श से लड़ गया वन्श  हो गया
विध्वंश ,,,,,,,2
वाद विवाद में  हर शव्दों से
 मन को लगता हैं  दंश,  होगया
विध्वंश ,
जर जेरु और जमीन के खातीर
आपस मे लड़कर  देखो मिट
रहा हैं वन्श होगया विध्वंश,,,,,2
मुख से राम औऱ वाणी में श्याम हैं , दुर्योधन से सारे काम हैं , जहर भरी वाणी से देखो मन को लगता दंश , और इधर दोनो के अन्तरमन मे बसा हुवा हैं
कंश , यही वजह हैं जिसके चलते होरहा हैं विध्वंश , मिट रहा हैं वन्श ,,,,2
एक लहू के दो अंशों में
बड़ा बन गया धन दौलत
का अंश , यही तो यारो मुख्य
वजह हैं जिससे हो रहा हैं कुल
के गौरव का विध्वंश हो रहा हैं
विध्वंश,,,,,,2
जब से कलयुग का युग आया
सब से बड़ी बानगई हैं माया,
ना वन्श बड़ा ना अंश बड़ा
यहाँ रावण दुर्योधन कंश बड़ा
दुर्विचार दुर्बुद्धि देखो चंहु ओर
हैं छाई , यही वजह हैं जिसके चलते आपस मे लड़कर देखो
मिट रहे है एक ही वन्श के अंश
हो रहा हैं विध्वंश ,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
    ( रसिक  बनारसी )

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