हिन्दी कविता : उसका क्या

जो बहुत कमाया उसका क्या,
जो कुछ न कमाया उसका क्या,
जो बहुत बनाया उसका क्या,
जो कुछ न बनाया उसका क्या,,,,2
जो बहुत सँजोता उसका क्या,
जो कुछ न रखता उसका क्या,
जो जी भर  खाएं उसका क्या,
जो खाली पेट हैं उसका क्या,,,2
जो महलों में रहता उसका क्या,
जो सड़कों पर सोता उसका क्या,
जो रेशम पहनते उसका क्या,
जो नग्गे घूमे उसका क्या,,2
जो माला मॉल हैं उसका क्या,
जो फ़टे हाल है उसका क्या,
जो गबरू जवान हैं उसका क्या,
जो बुरे हाल है उसका क्या,,,2
यहाँ सभी सांसो के अधीन हैं , जो सांसो की डोर टूट गई, तो यहाँ सभी की हालत एक सी होती हैं,
ना कोई राजा ना कोई रानी
ना कोई सिकन्दर कहलाता हैं, ,,,,,2
फिर झुठा गुमान किस बात का हैं
और किस भ्रम में तुम जीते हो,
काया हैं तेरी माटी की और तू माटी का इन्सान हैं,
माटी ही तेरा वजूद हैं
और माटी तेरी पहचान हैं,
फिर इसका क्या और उसका क्या,
जब सांसो की डोरी टूट गई तो यहाँ सब की एक सी हालत होती हैं,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी ( रसिक बनारसी )

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