हिन्दी कविता : #आईना

निर्मल जल सा सदा सभी को
सारा सत्य दिखा देती हैं,
ये हैं आईना हर किसी को उसका असली स्वरूप बता देती हैं,,,,,2
आईने से कोई कुछ छुपा नहीं सकता,
आईने को कोइ आइन दिखा नही सकता ,
आईना सभी को उनका सत्य बताता हैं,
पर आईने से कोई उसका हुनर
चुरा नही सकता,,,,,2
ना इसमें कोई छल हैं ना कोई कपट हैं
ना ईर्ष्या का कोई भाव है,
हा कड़ी धूप से ये कतराता हैं
सदा रहता ठंडी छांव हैं,
हा ये आईना हैं, जो सदा सत्य
ही दिखलाता हैं,,,,,,,2
जिस आईने से बहुत मोहब्बत थी अब उसी से कतराते हैं लोग,
जिस आईने में बार बार खुद को
देखकर  जी नही भरता था,
अब उसी आईने के सामने
जाते ही डर जाते  है लोग,
क्यो की ढलती उम्र में पके बाल
व झुर्रियां दिखाता हैं आईना, सदा सभी को सत्य बताता हैं आईना,,,,,,2
सौ टुकड़ो में टूट जाये चाहे कितना भी बिखर जाए पर हर टुकड़े में
सदा सत्य ही दिखाता हैं आईना,
कभी किसी के दबाव में नही आता हैं आईना,
सदा निर्मल जल सा सत्य ही दिखाता हैं आईना,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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