हिंदी व्यंग कविता : घर मे बैठे गद्दार,,,

घात लगाकर बैठे दुश्मन
अपने ही घर द्वारो में
सँभलकर रहना मेरे यारो
घर के ही गद्दारो से,
अक्सर सभी का घर जलता हैं
अपने ही घर के अंगारो से,,,,,,2
दोस्त यार साथी बन बैठे,
रिस्ता वो खूब जोड़ रहे है,
 कन्धे से कन्धा मिलाकर
चलते , पीछे से गर्दन मरोड़
रहे है, भाई भाई कर के देखो
जमकर रिस्ता जोड़ रहे है,,,,,2
आँखों पर बांधे वो अपने पन की
पट्टी , नजरो को देते धोखा हैं,,
हर पल उनके मन मे हैं ,ये हलचल
कहा मिले कब मौका हैं, ,, जैसे ही मौका पाएंगे ये गर्दन तोड़ कर जाएंगे,,,,,2
ये जयचन्दों की औलादे हैं
ये बाबर की संतान हैं,
ये लगा मुखोटा मुख ये ऊपर
झूठे बने इंसान है, बड़े प्यार से बोल रहे है, अंदर से शैतान हैं,
इनकी आत्मघाती हरकत से पूरा विश्व ही परेसान हैं,,,,2
रसिक लेखनी वो  लिखती है
जो दिखता हैं संसार मे,
सत्य सदा कड़वा होता हैं,
लिखना पढ़ना भारी हैं
लेकिन सदा स्तय के साथ खड़े रसिक तिवारी हैं,, ,,,,,2
अब अंत मे यही कहूंगा बाहर की चिन्ता मत करना, बचकर रहना अपने ही घर में बैठे गद्दारो से, अक्सर सभी का घर जलता हैं ,अपने ही घर के अंगारो से,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
                  ( रसिक  बनारसी )

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