हिंदी कविता : नया उमंग हैं

तले पकौड़ा बेचे चाय
ईनकी निराली ठाट हैं,
 बढ़िया सब्जी रोटी के संघ
थाली में दाल व भात हैं,
देशी घी का लगा है तड़का
क्या निराली ठाट हैं,,,,,2
सब्जी का ठेला जो लगाए
अच्छा पैसा वो कमाता हैं,
बड़े ढंग से जीवन जिये
मन मर्जी का खाये पिये,
घर खर्च आराम से चलता
सुख चैन सब को हैं मिलता,,,,,2
फल फ्रूट का जिसका धन्धा
मस्त रहे  हरदम वो  बन्दा,
सुबह शाम कर के वो फेरी
अच्छा नोट  कमाता हैं ,
घर परिवार और समाज संघ
अच्छे से जीवन बिताता हैं ,,,,2
पान पट्टी की जिसकी दुकान
उस्की सब से अलग पहचान,
 छोटे बड़े मझोले वाले सब
उसको पहचाने,आजे जाते
हर कोई बोले उसको भइया
जी राम राम एक जगह पर
बैठ कर भईया वो भी खूब
नोट कमाता है ,सब को पान  खिलाता हैं,,,,,,,2
पर कुछ युवा ऐसे हैं भइया
जिन्हें बनना हैं टाई कुर्सी का
गुलाम ,उनकी नजर में बड़ी
नॉकरी बाकी सब  छोटा
धन्धा हैं, जो करते ये सारे काम
वो जाहिल ग्वार बन्दा हैं,इनकी
नजर में इस दुनिया में ये सब बेकार धन्धा हैं,,,,,,2
पर ते टाई वाले युवा ये ना जाने कि  कीतने
सीए पिये इनसे ही नोट मकाते हैं, तुम
बैठ कर  घरो में करो बुराई ये कमाकर
लाल हो जाते है, क्या मस्त निराली इनकी ठाट हैं,,,,,2
आत्म निर्भर बनो दोस्तो
छोड़ो अब गुलामी , स्वदेशी
रोजगार से ,सभी अपनो को
जोड़ो , मन के भीतर जो भर्म
बैठा उस भर्म को अब तोड़ो
नया सवेरा नई उमंग हैं नई दिशा
में जाएंगे, आवो हम सब मिलकर
यारो एक नया  भारत बनाएंगे स्वदेशी अपनाएँगे,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी

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