सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा, निवारक हिरासत (प्रिवेंटिव डिटेंशन) व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर एक गंभीर आक्रमण है, इसलिए संबंधित अथॉरिटी को इसके तहत प्रदान किए गए छोटे-छोटे सुरक्षा उपायों (सेफगार्ड) का सख्ती से पालन करना चाहिए। सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, किसी भी आरोपी के पास आरोप को खारिज करने या अपनी बेगुनाही साबित करने के जो सामान्य तरीके होते हैं, निवारक हिरासत में लिए गए व्यक्ति को वह उपलब्ध नहीं हैं।
शीर्ष अदालत ने एक जून, 2022 के त्रिपुरा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुशांत कुमार बानिक की एक याचिका को स्वीकार किया। हाईकोर्ट ने हिरासत आदेश की वैधता पर सवाल उठाने वाले उसके आवेदन को खारिज कर दिया था। पीठ ने कहा, ऐसा लगता है कि प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश अनिवार्य रूप से इस आधार पर पारित किया गया था कि वह एक आदतन अपराधी है।
पूर्व में उसके खिलाफ एनडीपीएस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दो प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीठ ने कहा, हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत दर्ज दोनों मामलों में विशेष अदालत द्वारा अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया था।
पीठ ने कहा, यदि अपीलकर्ता को एनडीपीएस याचिकाकर्ता वकील ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय प्रतीक के स्वीकृत डिजाइन के संबंध में कलात्मक बदलाव या नयापन नहीं हो सकता है। अधिनियम की धारा-37 की कठोरता के बावजूद जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया था, तो यह दर्शाता है कि संबंधित अदालत ने उसके खिलाफ कोई प्रथमदृष्टया मामला नहीं पाया होगा।
नए संसद भवन पर शेर के प्रतीक आक्रामक नहीं, याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत निर्माणाधीन नये संसद भवन के ऊपर लगे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न (शेर) भारत के राज्य प्रतीक अधिनियम, 2005 का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस एमआर शाह और कृष्ण मुरारी की पीठ ने यह कहते हुए जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रतीक चिन्ह भारत के राज्य प्रतीक अधिनियम के डिजाइन के खिलाफ है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि नये प्रतीक में शेर अधिक आक्रामक प्रतीत होते हैं। इस पर जस्टिस शाह ने कहा, यह धारणा व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर है।