आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में कई ऐसी बातें बताई हैं जिनका पालन करके व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर बुलंदियों को छू सकता है। ऐसे ही आचार्य ने अपनी चाणक्य नीति में मित्र और शत्रु होने की असली वजह बताई है।
आचार्य चाणक्य को भारत का महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री, और राजनीतिक माना जाता है जिन्होंने अपने बुद्धि चातुर्य से कई विशाल साम्राज्य भी स्थापित किए। उन्होंने अपनी चतुराई से महान शासकों को उखाड़ फेंका था। आचार्य चाणक्य की प्रशासनिक व्यवस्था काफी अच्छी थी। उन्होंने राज्य के साथ-साथ समाज को एक उज्जवल भविष्य देने के लिए काफी काम किया।
आचार्य चाणक्य ने जीवन के हर पहलुओं को समझकर चाणक्य नीति की रचना की। चाणक्य नीतियां भले ही लोगों को कठिन लगे। लेकिन इनका पालन करके व्यक्ति एक सफल, खुशहाल जीवन जी सकता है। ऐसे ही आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बताया कि आखिर किसी भी व्यक्ति के मित्र और शत्रु किस कारण बनते हैं।
श्लोक
कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥
भावार्थ :
आचार्य चाणक्य के अनुसार, न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं।
आचार्य चाणक्य ने अपनी इस नीति के माध्यम से बताया है कि आज के समय में कोई किसी का मित्र या फिर शत्रु ऐसे ही नहीं बन जाता है बल्कि इसके पीछे एक कारण है और वो है काम।
जब हम दोस्ती की बात करें तो व्यक्ति का दोस्त तभी कोई बनता है कि जब वह उसके आसपास होता है। उदाहरण के तौर पर ले लें तो व्यक्ति देश परदेश से आकर ऐसी जगह बसता है जहां पर उसे अपना और परिवार का जीवन यापन करने का साधन मिल जाए। ऐसे में वह किसी जगह नौकरी कर लेता है।जहां उसके कई दोस्त बनते हैं। आचार्य चाणक्य बताते हैं कि कई बार दोस्त काम के कारण बनते हैं क्योंकि कई बार हम ऐसे लोगों से दोस्ती भी कर लेते हैं जिससे आपको फायदा हो।