सम्पूर्ण विश्व में सनातन संस्कृति की ज्ञान परंपरा प्राचीनतम है। भारत समृद्ध संस्कृति और विरासत की भूमि रही है। इसमें हिन्दू दर्शन वह सूर्य है जो सभी के जीवन का अंधकार दूर करता है और पथ-प्रदर्शन करता है। यह बातें वैदिक विश्वविद्यालय भोपाल के प्रोफेसर निलिम्प त्रिपाठी ने कही। वह बुधवार को दांदूपुर स्थित समदरिया स्कूल में “सनातन संस्कृति में ज्ञान परंपरा” विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।
प्रो त्रिपाठी ने कहा कि समग्र विश्व के कल्याण की भावना सनातन धर्म और हिन्दू दर्शन का मूल है। शरीर जड़ और आत्मा का निर्विकार है। संसार मन का ही ताना -बाना है। इस मन को व्यवस्थित करने की विद्या सनातन ज्ञान परंपरा की विशिष्टता है। इसी ज्ञान परंपरा में लक्ष्य की प्राप्ति, मुक्ति व मोक्ष मार्ग शामिल है। उन्होंने आगे कहा कि 5 वर्ष की अवस्था में ही ध्रुव व प्रह्लाद ने ज्ञान को धारण कर परमात्मा को प्रकट किया था। यह भारत वर्ष की ज्ञान परंपरा का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
संस्थान के निदेशक डॉ मणि शंकर द्विवेदी ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ मधुकराचार्य त्रिपाठी तथा आभार ज्ञापन प्रधानाचार्या रीना पांडेय ने किया। वहीं विद्यालय की संगीत शिक्षिका कादम्बरी द्विवेदी के निर्देशन में जिज्ञाशा, सौम्या, मानसी, निकिता तथा तरन्नुम ने संस्कृत भाषा मे स्वागत गीत गाया। इस अवसर पर सुषमा शुक्ला, नीतू सिंह, काजल यादव, शालिनी जायसवाल, विनोद यादव, मृणाल जतिन, आकांक्षा त्रिपाठी, नेहा, शिव प्रसाद पांडेय, धर्मेंद्र यादव आदि के अलावा बड़ी संख्या में छात्र एवं छात्रायें उपस्थित रहे।