समय की मारा मारी हैं,,,,

समय नही हैं यहाँ किसी को
अपनो के संघ थोड़ा वक्त बिताने का, समय नही हैं यहाँ किसी को
मन्दिर मस्जिद जाने का,
समय नही हैं यहाँ किसी को
मॉनव धर्म निभाने का, क्यो की
ये सब समय की मारा मारी हैं
ये सब से बड़ी लाचारी हैं,,,,,,,2
जिसे भी देखो हर कोई रहता
हरदम यहाँ पर बिजी,
 कोई नही है ईजी यारो कोई नही हैं ईजी, क्यो की ये
सब समय की मारा मारी हैं,
ये सब से बड़ी लाचारी हैं,,,,,,2
पती घर के बाहर बिजी
पत्नी घर के अन्दर बिजी
अम्मा बाबू जी भी देखो
खुद से ही ख़ुद में परेशान है
ये सब समय की मारा मारी हैं
ये सब से बड़ी लाचारी हैं,,,,,2
समय नही हैं यहाँ किसी को
जरा सुकून से दो निवाला खाने का ,
समय नही है यहाँ किसी को
प्यार से रिस्तो को निभाये को
क्यो की ये सब समय की मारा मारी हैं, ये सब से बड़ी लाचारी हैं,,,,,,,2
समय नही हैं समय नही हैं
कहकर समय गवाते हैं,
माया तो ये खूब कमाते पर
बाकी सब कुछ गवाते हैं,
जो यहाँ पर सारी उमर समय
का अभाव बताते हैं,
एक वक्त यही लोग यहाँ बैठ कर अश्क बहाते हैं, मूल्यवान जो समय बीत गया ये सोच उसे पछताते हैं, क्यो की ये सब
समय की मारा मारी हैं ये सब से बड़ी लाचारी हैं,,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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