सबरीमला मामले में कोर्ट ने कहा- वह कानूनी सवालों को वृहद पीठ को सौंप सकता है

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसकी पांच सदस्यीय पीठ सबरीमला मामले में पुनर्विचार के सीमित अधिकार का इस्तेमाल करने के दौरान कानूनी सवालों को वृहद पीठ को सौंप सकती है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एफ एस नरीमन और श्याम दिवान जैसे वरिष्ठ वकीलों की इन कानूनी आपत्तियों को मुखरता से खारिज कर दिया कि पिछले साल 14 नवंबर को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 के सबरीमला फैसले को चुनौती देने वाली समीक्षा याचिकाओं पर बिना कोई फैसला किये उसे वृहद पीठ के पास भेजने की गलती की। वर्ष 2018 में शीर्ष अदालत ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी।

संविधान पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हमने संबंधित पक्षों को विस्तार से सुना। …हम मानते हैं कि यह अदालत समीक्षा याचिका में कानून के प्रश्नों को वृहद पीठ के पास भेज सकती है।’’ न्यायमूर्ति बोबड़े, न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौडर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की संविधान पीठ ने फिर विभिन्न धर्मों में धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे के बारे में तैयार किए गए इन सवालों को पढ़कर सुनाया।

शीर्ष अदालत ने जो सात सवाल तय किये हैं उनमें धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे और यह कि क्या कोई व्यक्ति अपने से परे किसी अन्य धर्म के धार्मिक रीति-रिवाजों पर प्रश्न उठाते हुए जनहित याचिका दायर कर सकता है या नहीं, जैसे सवाल हैं। पीठ ने कहा कि मुद्दों के निपटान के लिए 17 फरवरी से रोजाना सुनवाई शुरू होगी और केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता 17 फरवरी को बहस शुरू करेंगे और उनके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन बहस करेंगे। न्यायालय ने कहा कि विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों को उनके द्वारा भरोसा किये गये फैसलों का संकलन देना होगा। शीर्ष अदालत ने वकीलों को यह सूचित करने का निर्देश दिया कि वे किसका प्रतिनिधत्व कर रहे हैं और इसी के बाद पीठ उन्हें बहस के लिए समय आबंटित करेगी।

पीठ ने कहा कि वह निर्धारित किये गये मुद्दों और मुद्दे जोड़ने या घटाने के लिए तैयार है। शीर्ष अदालत द्वारा तैयार किए गए सात सवालों में धार्मिक स्वतंत्रता का दायरा और धार्मिक स्वतंत्रता तथा विभिन्न धार्मिक पंथों की आस्था की स्वतंत्रता के बीच पारस्परिक असर का सवाल भी शामिल है। शीर्ष अदालत ने कहा कि नौ सदस्यीय पीठ संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और विभिन्न धार्मिक पंथों के अधिकारों के बीच उसकी भूमिका पर भी विचार करेगी। पीठ धार्मिक परंपराओं के संबंध में न्यायिक समीक्षा की सीमा और अनुच्छेद 25(2)(बी) में उल्लिखित ‘हिन्दुओं के वर्गों’ से तात्पर्य के बारे में भी विचार करेगी।विभिन्न धर्मों में महिलाओं के साथ पक्षपात से संबंधित मुद्दों को 14 नवंबर, 2019 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बृहद पीठ को सौंपा था। इस पीठ ने सबरीमला मामले के साथ ही मस्जिदों और दरगाहों में महिलाओं के प्रवेश और गैर पारसी व्यक्ति से विवाह करने वाली पारसी महिला को अज्ञारी के पवित्र अग्नि स्थल पर प्रवेश से वंचित करने की परंपरा से जुड़े मुद्दे वृहद पीठ के पास भेजे थे ताकि धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामलों के बारे में एक न्यायिक नीति तैयार की जा सके।

इससे पहले, सितंबर, 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत से केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने संबंधी व्यवस्था खत्म करते हुए इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था।

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