सन्त रैदास भक्ति नहीं बल्कि क्रान्ति कर रहे थे: गौतम
प्रयागराज ।बाकरबाद बमरौली स्थित डा. भीमराव अम्बेडकर मूर्ति स्थल, प्रयागराज के समक्ष प्रबुद्ध फाउंडेशन, डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा) के तत्वावधान में सन्त शिरोमणि गुरु रैदास की 645 वीं जयन्ती सादगीपूर्ण ढंग से समाजसेवी हीरल बौद्ध की अध्यक्षता में मनायी गयी।
सन्त सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुये समाजसेवी हीरालाल बौद्ध ने बताया कि सन्त रैदास ने श्रमिक जातियों का महत्व शोषक जातियों से अधिक बताया है क्योंकि श्रमिक जातियां देश के उत्पादन में अधिक भूमिका निभाता है। इसीलिये श्रमिक उपयोगी तबका है बनस्पति निठल्ले जी चुराने वाले शोषक तबकों के।
प्रबुद्ध फाउंडेशन के प्रबन्धक/ सचिव बतौर मुख्य अतिथि सन्त रैदास के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सन्त रैदास भक्त नहीं थे बल्कि सन्त थे। भक्त किसी के प्रति आस्थावान होता है किन्तु सन्त क्रांतिकारी होता है और वैज्ञानिक सोच व तार्किकता के विवेक पर चलता है। संत रैदास समतामूलक समाजवादी व्यवस्था के पोषक थे। सन्त रैदास ने बताया कि जाति-जाति में जाति है, ज्यों केलन में पाति. रैदास मानुष न जुड़ सके जबतक जाति न जात। उन्होंने इस हेतु जाति व्यावस्था के खात्मे के लिये संघर्ष किया। इसके लिये उन्होंने श्रम और शक्ति का पक्ष लेकर श्रमिक और शोषितों को जागृत किया और श्रमिकों तथा श्रम शक्ति के महत्व पर बल दिया तथा श्रम शक्ति का शोषण करने वालों का अपनी बैचारिकी से खुलेआम विरोध किया। सन्त रैदास बुद्धिज्म को मानते थे इसलिये उन्होंने बुद्ध की साम्यवादी विचारधारा को आत्मसात कर उसे आगे बढ़ाया।
समाजसेवी विनोद दिनकर ने बताया कि सन्त रैदास ने सत्ता के चरित्र को दमन के स्थान पर कल्याणकारी होने का भी दावा किया और सत्ता के सबसे उच्चतम चरित्र को निरूपित किया इसीलिये उन्होंने कहा कि ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सभी को अन्न, छोट बड़े सब सम बसे, रैदास रहे प्रसन्न. ऐसा राज्य साम्यवादी शासन में ही सम्भव है जिसमें उत्पादन के साधनों पर सबका बराबर हक हो।
समाजसेवी रामलाल गौतम ने बताया कि सन्त रैदास करिश्माओं के कायल नहीं थे और जो करिश्माये सन्त रैदास के बारे में कही गयी हैं वो शोषक सवर्ण जातियों द्वारा शोषित श्रमिक जातियों पर जानबूझकर घालमेल किया गया है जबकि रैदास के विचारों की काट शोषकों के पास नहीं थी। सन्त रैदास कर्म की प्रधानता के स्थान पर कर्मकाण्ड, पाखण्ड, अंधविश्वास, भक्ति व आस्था के विरुद्ध थे।
जयन्ती समारोह में अजेश गौतम, विनोद दिनकर, हीरालाल बौद्ध, रामआसरे, अशोक कुमार बौद्ध, सिद्धार्थ सिंह, हरिश्चंद्र बौद्ध, अनिल चंदी, अतीश कुमार, सतीश कुमार, अनिल मेम्बर, शिवलाल बौद्ध, राकेश कुमार, संतलाल, ओम प्रकाश, कृष्णा प्रसाद, मिश्रीलाल, आदि ने अपने विचार रखे।