सनातन धर्म की महिमा: स्वामी रामतीर्थ दास का संदेश, क्यों सनातन सर्वोपरि है?

महाकुंभ नगर : प्रयागराज महाकुम्भ अपनी अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर और अध्यात्मिक महिमा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। करोड़ों भक्त पवित्र संगम में अपनी आस्था की डुबकी लगा रहे हैं और साधु-संतों का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। रामतीर्थ भक्तमाल शिविर में भक्तों का जमावड़ा देखने को मिल रहा है, जहाँ स्वामी रामतीर्थ दास भक्तमाल निरंतर आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं और प्रसाद ग्रहण किया जा रहा है।
मीडिया से बात करते हुए स्वामी रामतीर्थ दास ने कहा कि,
 “सम्पूर्ण विश्व में प्रयागराज महाकुम्भ की महिमा छाई हुई है।”
उन्होंने महाकुम्भ की महिमा का बखान करते हुए कहा कि यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक विरासत और अध्यात्म का प्रतीक है, जो देश तथा दुनिया भर के लोगों को एकता और आस्था का संदेश देता है।
स्वामी रामतीर्थ दास से पूछे गए एक सवाल “सनातन धर्म की कौन सी वे बातें हैं जो पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती हैं?”उन्होंने स्पष्ट किया,
 “सनातन धर्म एक सर्वोपरि धर्म है; दूसरा कोई धर्म है ही नहीं। बाकी सभी तो पंथ मात्र हैं, और जितने भी धर्म हैं, उनकी उत्पत्ति सनातन हिंदू से हुई है। सनातन का न कोई आदिकाल है न कोई अंत, यह सदैव परोपकार और परमार्थ पर विश्वास रखता है।”
आधुनिक समय में धार्मिक मूल्यों की प्रासंगिकता:
एक अन्य प्रश्न पर  “आज के बदलते समय में धार्मिक मूल्यों की क्या भूमिका होनी चाहिए, और समाज में इनकी कैसे प्रासंगिकता बनी रहनी चाहिए?”
उनके अनुसार, “हमारे पूर्वजों ने जो मार्ग निर्धारित किया है, उसी पर चलकर ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। आधुनिकता के साथ नवीन और गलत मार्गों से दूर रहना चाहिए। आजकल तरक्की, हताशा और निराशा में जो मनुष्य बढ़ रहा है, वह वास्तविक भोग विलास या भौतिक चेतना विकास नहीं है। हमें अपने जीवन में धर्म, आधुनिकता और पारंपरिक मूल्यों का संतुलित समावेश करना चाहिए।”
प्रयागराज महाकुम्भ की यह अद्वितीय महिमा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति की स्थिरता और गौरवशाली विरासत को भी उजागर करती है।

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