आर.के. सिन्हा
राहुल बजाज के निधन के बाद अब उनके जैसे निर्भीक उद्योगपतियों को तलाश करना आसान नहीं रहा है। वे सच के साथ खड़े होने वाले बेखौफ उद्योगपति थे। आप उन्हें सच कहने से रोक नहीं सकते थे। देखा जाए तो वे निर्भीक इसलिए थे क्योंकि उनके पास सत्य की शक्ति थी । सत्य के प्रति निष्ठा उन्हें विरासत में मिली थी। उनके दादा जमनालाल बजाज स्वाधीनता सेनानी और गांधी जी के घनिष्ठ साथी थे। गांधी जी जमनालाल बजाज को अपना पांचवा पुत्र मानते थे। अब जो इंसान गांधी जी से इतना करीब हो, उसका सत्य के साथ खड़ा होना स्वाभाविक ही है। इस पर आश्चर्य किस बात का।
राहुल बजाज ने लगभग आधी सदी तक बजाज ऑटो का नेतृत्व किया। कोई सामान्य बात नहीं है कि कोई शख्स इतने लंबे समय तक देश के इतने महत्वपूर्ण औद्योगिक समूह के शिखर पर रहे और उसे नई बुलंदियों पर लेकर जाता रहे। उन्होंने 1965 में संभाला था बजाज समूह का जिम्मा। उनके कुशल नेतृत्व में बजाज ऑटो का टर्नओवर 7.2 करोड़ से 12 हजार करोड़ तक पहुंच गया और यह स्कूटर और मोटर साईकिल बेचने वाली देश की नंबर एक कंपनी बन गई। आज उनके समूह की मार्केट कैपिटल एक लाख करोड़ रुपए से अधिक है। इसमें हजारों मुलाजिम काम करते हैं और इसके लाखों अंश धारक हैं। बजाज ऑटो का 1970 से लेकर 1990 के दशकों में स्कूटर बाजार पर कब्जा रहा। हालांकि उसके बाद हीरो, होंडा और टीवीएस जैसी कंपनियों के भी उत्पाद बाजाक में आने से राहुल बजाज की कंपनी को चुनौती तो मिलने लगी। लेकिन, उसका बाजार में दबदबा बना रहा। उसने अपने स्कूटर बनाने तो बंद कर दिए पर बजाज पल्सर मोटर साइकिल ने एक बार फिर से उसे वैसा ही अहम स्थान दिलवा दिया दो पहिया वाहनों के सेग्मेंट में।
बेशक, राहुल बजाज की कंपनी के स्कूटरों ने भारत के मिडिल क्लास को उसकी अपनी निजी सवारी दी थी। स्कूटर का मतलब बजाज ही होता था। यह वह दौर था जब देश में कारों की क्रांति आने में अभी वक्त था। उस दौर में बजाज स्कूटर होना ही शान समझा जाता था। राहुल बजाज की कंपनी का बजाज चेतक स्कूटर मिडिल क्लास भारतीय परिवारों की आकांक्षा का प्रतीक बना।
राहुल बजाज ने लंबी पारी खेलने के बाद अप्रैल 2021 में बजाज ऑटो के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, उन्हें पांच साल के लिए इसके एमेरिटस चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया था। वे 2006 में महाराष्ट्र से राज्य सभा सांसद भी रहे। उनमें किसी तरह का श्रेष्ठता-बोध या बड़ा उद्योगपति होने का घमंड नही था। वे संसद भवन में अन्य सांसदों के अलावा वह संसद ‘कवर‘ करने वाले पत्रकारों से भी खूब घुल-मिल कर बातें करते थे। उनसे बात करते ही समझ आ जाता था कि वे कितने कुलीन और सुसंस्कृत परिवार से आते हैं।
राहुल बजाज उन लोगों में से थे जो एक बार कोई फैसला लेने के बाद पीछे नहीं हटते थे। उन्होंने अपने स्कूटर की फैक्ट्री पुणे के पास एक छोटी सी जगह अक्रूडी लगाने का फैसला किया तो उनके बहुत से मित्रों को हैरानी हुई। वे मुंबई छोड़ रहे थे। आखिर मुंबई कौन छोड़ता है। उन्होंने अक्रूडी में फैक्ट्री लगाई जहां पर पहुंचना भी कठिन था। पर उन्होंने वहां पर फैक्ट्री की स्थापना के साथ ही तमाम दूसरी सुविधाओं की भी व्यवस्था की। उनके इस कदम से महाराष्ट्र के एक पिछड़े इलाके का विकास हुआ और वहां के लोगों की जिंदगी बदल गई। उसमें खुशहाली आ गई।
बेशक, राहुल बजाज का निधन देश के लिए बड़ी क्षति है। देश ने एक ऐसा दूरदर्शी व्यक्ति खो दिया है जिन पर देश गौरवान्वित महसूस करता था। उनकी राष्ट्र निर्माण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता थी। सच में,देश के औद्योगिक विकास में उनके योगदान का कोई सानी नहीं है। वे इस लिहाज से जे.आर.डी. टाटा केबाद सबसे बुलंद शख्सियत के रूप में सामने आते हैं।
राहुल बजाज अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति सदैव सजग रहे। वे अपने साथी उद्मियों से भी उम्मीद रखते थे कि वे सब भी राष्ट्र निर्माण में योगदान देंगे। वे भारतीय उद्योग परिसंघ ( सीआईआई) के दो बार अध्यक्ष रहे। एक तरह से कह सकते हैं कि वे सीआईआई को खड़ा करने वालों में से थे। उनकी सरपस्स्ती में सीआईआई देश के चोटी के उद्मियों की प्रमुख संस्था बनी।
बजाज आटो समूह के फाउंडर चेयरमेन राहुल बजाज दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़े थे। यह 1960 के दशक की बातें हैं। वे कई बार अनौपचारिक बातचीत में बताते भी थे कि वे सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़े हैं। उनका दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया से भी संबंध था। दरअसल राहुल बजाज के दादा जमनालाल बजाज ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कईं बार आर्थिक मदद की थी । उनके नाम पर जामिया में एक बिल्डिंग भी है। यानी जामिया को याद है जमनालाल बजाज का एहसान। जामिया अलीगढ़ से दिल्ली 1925 में शिफ्ट हुई थी। उसके दिल्ली आने के बाद गांधी जी के साथ जमनालाल बजाज और महादेव देसाई का जामिया में आना- जाना लगा रहता था। जामिया परिवार के लिए गाँधी जी और जमनालाल बजाज सदैव आदरणीय रहेंगे।
राहुल बजाज उन उद्योगपतियों में से थे जिनकी शख्सियत की सरलता, सज्जनता और विनम्रता सबको प्रभावित करती थी। वे संबंध निभाते थे। यह बात कम लोगों को पता है कि राहुल बजाज और चोटी के रेडियो कमेंटेटर जसदेव सिंह बेहद करीबी रिश्तेदार थे। दरअसल जसदेव सिंह की सास गीता देवी बजाज को स्वाधीनता सेनानी जमनालाल बजाज पुत्री ही मानते थे। यह संबंध सदैव बने रहे। आगे चलकर गीता बजाज की पुत्री और जसदेव सिंह की पत्नी कृष्णा जी और राहुल बजाज भाई- बहन के संबंधों को आगे लेकर चले। जसदेव सिंह के परिवार का राहुल बजाज के साथ शादी-ब्याह और दूसरे कार्यक्रमों में मिलना जुलना लगा रहता था। दोनों परिवारों में बेहद आत्मीय संबंध रहे। दोनों को अपनी राजस्थानी पृष्ठभूमि पर नाज था।
राहुल बजाज कितने सरल और सहृदय थे उसका एक छोटा सा व्यक्तिगत अनुभव ही पर्याप्त होगा I सन 1973 में राहुल जी पटना में बजाज इलेक्ट्रिकल्स के एक शो रूम के उद्घाटन के लिये आये थे I उन दिनों मैं पत्रकारिता करता था I मेरी कुछ मिनटों की बात हुई I मेरे सभी शरारतपूर्ण प्रश्नों का उन्होंने शालीनता से जवाब दिया I
बात आयी-गई और ख़त्म हो गई I राहुल जी 2006 से लेकर 2012 तक राज्य सभा सदस्य रहे I मैं राज्य सभा में 2014 में आया I 2016-17 के बजट सत्र के दौरान सेन्ट्रल हॉल में मेरी उनपर नजर पड़ी I मैंने जाकर नमस्कार किया और अपना नाम और पटना भर का परिचय दिया I राहुल जी ने तपाक से उत्तर दिया “हाँ आपको कैसे नहीं याद रखूँगा I बड़े अच्छे और गंभीर सवाल पूछे थे आपने !” ऐसे थे राहुल बजाज जी I
राहुल बजाज से देश के उद्यमियों को राष्ट्र निर्माण, सामाजिक दायित्वों के निर्वाह और किसी भी बिन्दु पर खुल कर अपनी बात रखने की प्रेरणा लेनी होगी। उन्हें अपनी दब्बू वाली छवि स बाहर निकलना होगा। अगर उनके कोई मसले हैं तो उन्हें सरकार के सामने रखना होगा। राहुल बजाज यह सब करते थे। इसलिए आज उनके न रहने पर सारा देश शोकाकुल है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्