संघ के शिष्टाचार में पक रही भविष्य की सियासत, RSS ने मुलायम और शरद को श्रद्धांजलि देकर यादव समाज को साधा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिनिधि सभा ने भगवा खेमे के धुर विरोधियों को भी श्रद्धांजलि देकर लोकसभा चुनाव से पहले भविष्य की राजनीति के संकेत दे दिए हैं। बैठक में सपा संरक्षक स्व. मुलायम सिंह यादव और समाजवादी नेता रहे स्वर्गीय शरद यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सियासी पंडितों का मानना है कि संघ ने यह हरियाणा, यूपी और बिहार में यादव वोटों को साधने के लिए किया है।

हरियाणा के पानीपत स्थित समालखा में चल रही तीन दिवसीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने श्रद्धांजलि के लिए जिन 100 नेताओं के नाम पढ़े, उनमें मुलायम सिंह और शरद यादव को श्रद्धांजलि देना राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है। दोनों ही नेताओं की राजनीति जीवन पर्यंत आरएसएस की खिलाफत के इर्द-गिर्द घूमती रही। मुलायम सिंह ने तो अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण का विरोध किया। सपा सरकार के अयोध्या में कारसेवकों पर चली लाठियों और गोलियों को संघ के वैचारिक राजनीतिक संगठन भाजपा की ओर से आज भी चुनावी मुद्दा बनाया जाता है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए की समाप्ति, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत होने संघ के दो बड़े मुद्दे हल हो गए हैं। 2024-25 में आरएसएस के शताब्दी वर्ष के मद्देनजर देश में भाजपा की सरकार होना संघ के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में संघ ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पिछड़े वर्ग में प्रभावशाली यादव वोट बैंक को साधने के लिए यह कदम उठाया है।

राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का मानना है कि आरएसएस ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। संघ ने संदेश देने की कोशिश कि है कि भले ही मुलायम सिंह और शरद यादव किसी भी राजनीतिक दल से रहे हों, लेकिन उनका सियासी कद बेहद कद्दावर था। हिंदी पट्टी में यादव जैसी मार्शल कौम का समर्थन मिल जाए तो इसका जबरदस्त लाभ हो सकता है। वरिष्ठ पत्रकार जेपी शुक्ला का मानना है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद आरएसएस अपनी छवि में सुधार के लिए कई प्रयास कर रहा है। प्रतिनिधि सभा की बैठक में मुलायम और शरद यादव को श्रद्धांजलि देना भी उसी का हिस्सा है।

पांच वर्ष से कोशिश
भाजपा बीते पांच वर्ष से भाजपा यादव वोट बैंक में पकड़ बनाने में जुटी है। मुलायम सिंह को मरणोपरांत पद्म विभूषण दिया गया। पीएम मोदी ने भी उनके निधन के बाद उनसे जुड़ी यादों को ट्विटर पर साझा किया। इसके अलावा हरनाथ सिंह यादव को पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया। सहकारिता के क्षेत्र में सपा नेता शिवपाल सिंह का पत्ता साफ करने के लिए पार्टी ने कभी उनके करीबी रहे संतराज यादव को ही चुना। संतराज यादव को सहकारिता में सक्रिय किया।

आजमगढ़ में सफल रहा है भाजपा का प्रयोग
आजमगढ़ को इटावा से बड़ा यादवों का गढ़ माना जाता है। आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव में भाजपा का दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को प्रत्याशी बनाने का प्रयोग सफल रहा। मुलायम परिवार के धर्मेंद्र यादव के सामने भाजपा के दिनेश लाल यादव कुछ हद तक यादव वोट खींचने में सफल रहे। इससे पहले भाजपा आजमगढ़ में रमाकांत यादव को उम्मीदवार बनाकर भी चुनाव जीत चुकी है। रामपुर उप चुनाव में भाजपा की जीत को भी इसी रणनीति की आंशिक सफलता माना जाता है।

मुलायम को सम्मान, अखिलेश पर वार
यादव समाज में अखिलेश यादव के विरोधी यादव वोट बैंक को साधने की कोशिश का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुलेमन से पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव और सपा विधायक शिवपाल सिंह यादव को सम्मान दिया। वहीं भ्रष्टाचार, अपराध और परिवारवाद के मुद्दे पर अखिलेश पर लगातार वार किए।

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