नैनी, प्रयागराज। सैम हिग्गिनबाॅटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (शुआट्स) में चल रहे ग्रामीण कृषि मौसम सेवान्तर्गत भारत सरकार से प्राप्त पूर्वानुमान के अनुसार वैज्ञानिकों ने कृषकों को सलाह दी है कि मानसून वापसी आरंभ होने के कारण कृषि गतिविधियों की योजना बनाते समय दैनिक मौसम परिस्थितियों का विशेष ध्यान रखा जाय । धान में दीमक व जड़ की सूड़ी के नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफास 20 प्रतिशत ई. सी. 2.5 ली. प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें। केवल जड़ की सूड़ी का प्रकोप होने पर इसके नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 0.3 प्रतिशत सी. जी. 25 कि.ग्रा. 3-5 सेमी. स्थिर पानी में बुरकाव करें। धान की फसल में पत्ती लपेटक, तनाछेदक, हरा फुदका एवं हिस्पा कीट से बचाव के लिये कार्टाप हाईड्रोक्लोराइड (50 एस.पी.) की 150 से 200 ग्राम मात्रा 200 ली. प्रति एकड़ पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें प्रदेश हेतु स्वीकृत गन्ना किस्मों की को. शा. 13235 को लख. 14201 को, 15023 को 0118, को. शा. 17231, को. शे. 13452 तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश हेतु संस्तुत किस्मों को लख. 15466 व 16466 आदि की बुवाई करें। लालसड़न रोग से प्रभावित गन्ने क्लम्प / मूढ़ को उखाड़कर नष्ट कर दें। देर से बोई गई अरहर में पत्ती लपेटक का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमेथोएट 30 ई. सी. 1 लीटर याइमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 200 मिली. प्रति हे. 500 से 600 लीटर पानी अथवा क्लोरपाइरीफॉस 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। राई / सरसों की बुंदेलखण्ड एवं आगरा मण्डल के सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त प्रजातियों यथा नरेन्द्र अगेती राई – 4, रोहिणी, माया, उर्वशी, बसंती (पीली), नरेन्द्र स्वर्णा राई-8, नरेन्द्र राई (एन. डी. आर. – 8501) तथा असिंचित दशा में वरूणा (टी 59) एवं वैभव की बुआई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में करें। बेहन हेतु गोभीवर्गीय सब्जियों, शिमला मिर्च तथा टमाटर आदि की नर्सरी में बुआई उठी हुई क्यारियों (रेज्ड बेड) में करें तथा पूर्व बोई गई तैयार पौध की रोपाई भी यथाशीघ्र करें।
यदि शीत गृह में भण्डारण करने से पूर्व आलू उपचारित न किया गया हो तो शीतगृह से आलू निकालकर छॉटने के तुरन्त बाद आलू के कन्दों को बोरिक एसिड के 3 प्रतिशत घोल से 30 मिनट तक उपचारित करके छायादार स्थान में सुखा लें।
अंकुरित बीज आलू को उपचारित न करें। आम के बाग के प्रथम दस वर्षों में अधिक लाभ के लिये अंतः फसल के रूप में आलू, मिर्च, टमाटर, लोबिया तथा ग्लेडियोलस की खेती की जा सकती है।बागों में यथा आवश्यक निराई-गुड़ाई करें। मत्स्य पालकों को मत्स्य बीज की वृद्धि हेतु पूरक आहार का प्रयोग तालाब में मछलियों के भार का 1 से 2 प्रतिशत प्रतिदि के अनुसार करना आवश्यक है। जहां खुरपका एवं मुंहपका बीमारी एफ.एम.डी.) का प्रकोप है वहां टीकाकरण सभी पशुचिकित्सालयों में कराया जा रहा है। यह सुविधा सभी पशुचिकित्सालयों पर निशुल्क उपलब्ध है। बड़े पशुओं में गलाघोटू बीमारी की रोकथाम हेतु एच.एस. वैक्सीन से तथा लगड़िया बुखार की रोकथाम हेतु बी क्यू वैक्सीन से टीकाकरण करायें।