नैनी, प्रयागराज। सैम हिग्गिनबाॅटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (शुआट्स) में चल रहे ग्रामीण कृषि मौसम सेवान्तर्गत भारत सरकार से प्राप्त पूर्वानुमान के अनुसार वैज्ञानिकों ने कृषकों को सलाह दी है कि गेहूँ की विलम्ब से बुवाई हेतु क्षेत्रीय संस्तुत प्रजातियों यथा डी.वी.डब्लू.-316, डी.वी.डब्लू.-107, पी.वी.डब्लू. -833, एच.डी.-3118, के.-7903 (हलना) एवं के.-9423 (उन्नत हलना) आदि की बुवाई 25 दिसम्बर तक करें। गेहूँ में बुवाई के 20-25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था में) हल्की सिंचाई अवश्य करें। विशेष रूप से ऊसर भूमि में पहली सिंचाई 25-30 दिन बाद हल्की ही करें। सिंचाई शाम को ही करें। फसल की पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद कल्ले फूटते समय व दूसरी दुग्धावस्था में करें। खरपतवारनाशी का उपयोग गेहूँ की भांति करें तथा खरपतवारों के नियंत्रण हेतु संस्तुत रसायनों का समय से प्रयोग करें। फसल में आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई 60 से 65 दिन बाद कलियां बनने की अवस्था पर करें। किसान भाई अपने खेत की निरंतर निगरानी करते रहे, सफेद रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देने पर 600 से 800 ग्रा. मैकोजेब (डाईथेन एम-45) का छिड़काव 250 से 300 लीटर पानी में डालकर 15 दिन अंतराल पर 2 से 3 बार करें। मटर में फूल आने के समय एक सिंचाई तथा दाना भरते समय दूसरी सिंचाई अवश्य करें। मटर की फसल में बुकनी रोग का लक्षण दिखाई देने पर नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत 2 कि.ग्रा. अथवा ट्राईडेमेफॉन 25 प्रतिशत डब्लू.पी. 250 ग्राम प्रति हे. लगभग 500 से 600 पानी में घोलकर छिड़काव करें। जाड़े में काटे गन्ने की पेड़ी में अपेक्षाकृत कम फुटाव होता है। अच्छा फुटाव प्राप्त करने के लिये सिंचाई के उपरान्त ओट आने पर 10 टन/हे. ताजा प्रेसमड डालकर गुड़ाई करें। इनसे फुटाव अच्छा होगा। आलू में पछेती झुलसा तापमान 10 20 सेन्टीग्रेट के मध्य तथा अपेक्षित आर्द्रता 80 प्रतिशत के लगभग एवं मौसम बदलीयुक्त होने पर इस रोग का प्रसार अधिक होता है। रोग की रोकथाम के लिये लक्षण दिखाई देने से पूर्व ही जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू, पी. 1.5 2.00 कि.ग्रा प्रति हे के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर अवश्य करें। टमाटर तथा मिर्च में झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत की 2 ग्रा. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। बरसीम अधिक खिलाने से पशुओं को अफरा हो सकता है अफरे से बचाव के लिये बरसीम के साथ सूखा चारा मिलाकर पशु को दें। वर्तमान समय शीत ऋतु का है ऐसे समय में तालाबों में अल्सरेटिव डिजीज सिड्रोम की बीमारी परिलक्षित होती है अतः कृषकों को सलाह दी जाती है कि अपने-अपने तालाबों में 2.00 से 2.5 कु. प्रति हे. की दर से बुझे हुये चूने का प्रयोग करें।
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