क्या खोया क्या पाया हैं
बोलो क्या गवाया हैं, बात
यदी समझ मे आई होतो
जरा हमे भी बतलादो , आखिर
क्या मिला हैं आप को साहब
ऐसी हिस्सेदारी में,,,,,,,
सब कुछ मटिया मेल होगया
खत्म आप का खेल हो गया,,,,2
नाम कमाया जो काई दसको में
जो मर्यादा बनाई थी , जिस नाम
के आगे नतमस्तक होते हर सनातनी भाई थे, उसे आप ने गवादिया खुद ही खुद के हाँथो
से खुद के घर आँगन को जला दिया,बोलो साहब क्या पाया
हैं ऐसी हिस्सेदारी में,,,2
सब कुछ मटिया मेल हो गया
खत्म आप का खेल हो गया,,,2
आज साथ मे न कोई साथी
ना कोई अपना ना संघी साथी
भीड़ बहुत है आस आप के पर
एक नही कोई सच्चा साथी, सारे
लालच में पड़े हुवे हैं, जिद के खातिर अड़े हुवे हैं, कहने को ये
सारे अपने है पर गला काट कर जाएंगे, जब तक आप इन्हें समझोगे तब तक ये सब कुछ लूट
कर चले जायेंगे,बोलो साहब क्या पाया हैं , ऐसी हिस्से दारी में,,,,,,2
सब कुछ मटिया मेल हो गया
खत्म आप का खेल हो गया ,,,,
जो साहेब से घबराते थे
आप ने उनसे हाथ मिलाया हैं
जो दूर से ही डर जाते थे उन्हें
आप ने अपने घर मे बिठाया हैं
लाखो लाख लोगों के मन को
आप ने ठेश पहुचाया हैं,बोलो साहब आप ने आखिर क्या पाया हैं, ऐसी हिस्सेदारी में,,,,,
सब कुछ मटिया मेल हो गया
खत्म आप का खेल हो गया,,2
अब कुछ भी कहना नही बाकी हैं
ना कोई संघी साथी हैं, दूल्हा तन्हा
खड़ा हुवा है, गायब आज बाराती हैं,वो शेर की दहाड़ न जाने कहा पर खोगई , ढोल नगाड़े और ताशे की आवाज कहा पर विलुप्त
हो गई,, बोलो साहब क्या मिला हैं ऐसी हिस्सेदारी में,,,,,,
सब कुछ मटिया मेल हो गया
खत्म आप का खेल हो गया,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )