विलुप्त होती मानवता”

विलुप्त होती मानवता”

आज सहमा सहमा सा हर आदमी है,
कोरोना से डरा हर आदमी है,
आज मानवता हारी है,
हर एक के मन में उथल-पुथल जारी है, लोग अब घबरा रहे हैं,
भगवान से क्षमा मांग रहे हैं,
प्रकृति में आया तूफान सा है,
हर एक के मन में उफान सा है,
हर कोई बस यह सोच रहा है,
जीवन कितना अब शेष बचा है,
लेकिन अपनी आदत से मात खा रहा है,
ना चाह कर भी नियमों को तोड़ता जा रहा है,
महामारी का टिक टॉक बना रहा है,
अपने साथ दूसरों का भी जीवन खतरे में डालता जा रहा है,
मनुष्य एक सामाजिक पशु है,
लगता है यही दर्शा रहा है,
लेकिन पशु भी नियम जानते हैं,
बिना वजह किसी को खतरे में नहीं डालते हैं,
यह भले ही किसी का मजाक हो,
लेकिन किसी की जान पर बन आई है,
कुछ लोग लॉक डाउन का मजाक बना रहे हैं,
और कुछ लोगों को मुसीबत में डाल रहे हैं, सोचो उन डॉक्टरों की जो जान पर खेल रहे हैं,
सोचो उन पुलिस वालों की जो नियम पालन में लगे हैं,
सोचो अपने देश के प्रधान पुरुष की जो सबकी चिंता में जाग रहा है,
सोचो उनकी जो इस घड़ी में आपके द्वार पर अन्न धन पहुंचा रहा है,
तो आओ हम मिलकर उनका प्रयास सफल बनाएं,
कोरोना पर विजय पाने में अपनी एकजुटता दिखलाएं,
आओ इस समस्या से जल्दी छुटकारा पाएं, महामारी की रोकथाम में सहयोग कर देश को विश्व गुरु होने का अवसर दिलाएं,
आओ पूरी निष्ठा से लॉक डाउन को आगे बढ़ाएं,
और हमारी सेवा में लगे जांबाज लोगों का मान बढ़ाएं ।

डा० कुसुम पाण्डेय

सचिव- सर्व ब्राह्मण महिला (मंडल) प्रयागराज

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