विलुप्त होती जनजातीय सांस्कृतिक भारतीय भारत की धरोहर : प्रो सुरेश शर्मा

प्रयागराज ! भारत की सांस्कृतिक विरासत को समेटे केन्द्र का प्रतिष्ठापरक आयोजन राष्ट्रीय शिल्प मेला-२०२१ में जहाँ एक ओर पंजाबी जूती शिल्प की धूम है, वहीं लखनऊ के चिनहट के टेराकोटा व कश्मीर के शॉल और भागलपुरी शिल्क और सांगानेरी प्रिन्ट की राजस्थानी चादरें, चन्देरी सिल्क की साडि़यों ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। व्यंजनों की श्रृंखला में राजस्थानी कचौड़ी, लखनऊ की रबड़ी मलाई, हैदराबादी वाहिद की बिरयानी, बिहार का बाटी चोखा दिल्ली के चाट ने लोगो की जुबान का स्वाद बढ़ाया। सायंकालीन सांस्कृतिक संध्या के शुभारम्भ में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ बहुचर्चित लोकगीत गायक हृदय मिश्रा ने अपनी मीठी आवाज और गाने के अनूठे अंदाज दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। गणेश वंदना ‘‘गणपति विराजो, मोरे अंगना’’ और आंचलिक लोकगीत की बानगी ने दर्शकों की तालियां बटोरी, वहीं गोण्डा से पधारे सही राम द्वारा ढोलक और दण्डताल के सुर पर वीर रस से भरा आल्हा खण्ड के अन्तर्गत ‘‘माड़वगढ़ की लड़ाई के प्रसंग को जोशपूर्ण तरीके से प्रस्तुत कर दर्शकों में उत्साह का संचार किया। हरियाणा के कलाकारों ने पनिहारी नृत्य की प्रस्तुति की, ब्रजमण्डल से आये जितेन्द्र पराशर एवं साथी कलाकारों ने मयूर नृत्य की प्रस्तुति से राधा कृष्ण की लीलाओं को जीवंत किया। बुन्देलखण्ड अंचल के सुपरिचित लोकनृत्य राई की मनमोहक प्रस्तुति राम सहाय पाण्डेय एवं दल द्वारा प्रस्तुत किया गया, इसी क्रम में मध्य प्रदेश के छिन्दवाड़ा से आये कलाकारों ने गौंड जनजाति का पारम्परिक शैला और गैंडी नृत्य तथा त्रिपुरा से पधारी सुश्री पंचाली देव बर्मा एवं दल ने पूर्वोत्तर राज्य के लोकनृत्य को अपनी पारम्परिक बानगी में आंचलिक लोकगीतों और वाद्यय यंत्रों की थाप पर लबांग बोमानी नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।
राष्ट्रीय शिल्प मेले की द्वितीय संध्या के अवसर पर केन्द्र निदेशक प्रो० सुरेश शर्मा द्वारा स्वागत उद्बोधन के साथ ही विलुप्त होती जनजातीय सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने के लिए और उसकी खूबियों से जन मानस को अवगत कराया ।

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