प्रयागराज। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति की विविधता का उचित समावेश किया गया है। जिसमें 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा प्रणाली के स्थान पर 5,3,3,़4 फार्मूला लागू किया जाएगा। शुरुआती तीन वर्ष प्री प्राइमरी एजुकेशन के होंगे, जिसमें आंगनवाड़ी शामिल होंगे।
यह बातें मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने गुरूवार को सिविल लाइंस स्थित ज्वाला देवी इण्टर कालेज में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मंथन हेतु आयोजित विद्वत गोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि इस प्रकार पहले 5 वर्ष में 3 वर्ष की प्री प्राइमरी शिक्षा तथा पहली व दूसरी क्लास को शामिल किया गया है। उसके बाद तीसरी चैथी और पांचवी क्लास को प्राथमिक शिक्षा में शामिल करते हुए मातृभाषा पर जोर दिया गया है। कक्षा 6 से 8 तक के 3 वर्षों में मैथ साइंस पर बल देते हुए व्यवसायिक शिक्षा का आरंभ किया जाएगा। स्कूली शिक्षा के अंतिम 4 वर्ष अर्थात 9वीं 10वीं 11वीं तथा 12वीं कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए वैकल्पिक विषय का चुनाव करने की छूट दी गई है। 12वीं तक मैथ साइंस की अनिवार्यता को लागू किया जाएगा। तीन से 6 वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन का प्रावधान किया गया है।
विशिष्ट अतिथि काशी प्रान्त के प्रदेश निरीक्षक रामजी सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति को कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिली। यह स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पहले 1968 तथा 1986 में शिक्षा नीतियां लागू की गई थी। उन्होंने इस नवीन शिक्षा नीति को ऐतिहासिक फैसला बताया, साथ ही कहा कि नई शिक्षा नीति द्वारा शिक्षा के सभी स्तरों तथा गतिविधियों से सम्बंधित प्रावधान किए गए हैं। इस शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण तथा सार्वभौमिक शिक्षा के साथ ही व्यवसायिक शिक्षा पर भी बल दिया गया है। विद्यालय के प्रधानाचार्य युगल किशोर मिश्र ने अतिथियों का परिचय कराते हुए उनका सम्मान किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ईसीसी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डाॅ. अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि इस शिक्षा नीति के अनुसार रिपोर्ट कार्ड में विद्यार्थी के स्किल्स अन्य गतिविधियों में उसकी भूमिका अर्थात 360 डिग्री समग्रता रिपोर्ट कार्ड बनेगा, जिसमें अध्यापकों के साथ-साथ छात्र की फ्रेंड्स सर्कल का भी मूल्यांकन निहित होगा। इविवि के शारीरिक विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. अर्चना चहल ने कहा कि स्कूली शिक्षा में एक और अहम बदलाव के रूप में ’मातृभाषा’ को शामिल किया गया है, जिस पर खासा विवाद हो रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार अब बच्चे पहली से पांचवी तक की शिक्षा या सम्भवतः आठवीं तक की शिक्षा अपनी मातृभाषा के माध्यम में ही ग्रहण करेंगे। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि बच्चा अपनी भाषा में चीजों को बेहतर ढंग से समझता है, इसलिए शुरूआती शिक्षा मातृभाषा माध्यम में ही होना चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ अचार्य तेज प्रताप सिंह एवं संचालन आचार्य सन्तोष पाण्डेय ने किया। विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य पवन दीक्षित ने आये विद्वतजनों का आभार व्यक्त किया।